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भैंसे और मेढ़े का दृष्टांत
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४-५. परिपूणक और हंस का दृष्टांत कुछ श्रोता परिपूणक (पक्षी विशेष का जालीदार घोंसला) के समान दोषग्राही होते हैं। जैसे परिपूणक में कचरा युक्त घी डालने पर उसमें कचरा ठहर जाता है और घी च्यव कर नीचे निकल जाता है। ऐसे ही कुछ श्रोता होते हैं, जो व्याख्याता के द्वारा प्रमाद आदि के कारण कभी कोई ऐसी अन्यथा व्याख्या हो जाये, जो उन कुशिष्यों के प्रमाद अनाचार अनुकूल हो, तो वे उसे ग्रहण करके रखते हैं, शेष यथार्थ हितकर व्याख्या को भूल जाते हैं अथवा उन आचार्य की उस विपरीत व्याख्या को लेकर उन्हें व्याख्यान के अयोग्य आदि बतलाते हैं और शेष व्याख्यान कुशलता को एक ओर डाल देते हैं अथवा उनकी व्याख्या की यथार्थता को नहीं देखते अपनाते, परन्तु अपने जीवन में रहे किसी दुर्गुण को देखते अपनाते हैं। ऐसे दुर्गुणग्राही श्रोता, श्रुतज्ञान दान के अयोग्य हैं। ... कुछ श्रोता हंस के समान गुणग्राही होते हैं। जैसे - हंस को यदि जलमिश्रित दुग्ध मिलता है, तो वह अपनी चोंच में रही अम्लता के कारण जल से दूध को पृथक् करके दूध ग्रहण करता है
और जल छोड़ देता है अथवा हंस स्वच्छ जल पीता है। मलिन जल छोड़ देता है। कुछ श्रोता भी इसी स्वभाव के होते हैं। यदि कभी व्याख्याता, छद्मस्थता से व्याख्यान में कहीं कोई स्खलना कर जाता है, तो वे अपनी विवेक रूप चंचु से उस स्खलना रूप जल को पृथक् करके यथार्थ व्याख्या रूप दूध ही ग्रहण करते हैं अथवा व्याख्याता के व्याख्यान में रहे हुए प्रमाद की उपेक्षा करके, उनके व्याख्यान कौशल की प्रशंसा करते हैं अथवा उनके जीवन में रहे दुर्गुण को ग्रहण नहीं करके, उनके यथार्थ व्याख्यान के अनुसार अपना आचार बनाते हैं। ऐसे गुणग्राही श्रोतां हंस के समान दुर्लभ हैं और एकान्त योग्य हैं।
६-७. भैंसे और मेढ़े का दृष्टांत १. कुछ श्रोता भैंसे के समान अन्तराय करने वाले होते हैं। जैसे-भैंसा जब तालाब आदि में प्रवेश करता है, तो वह उसमें शीतलता के लिए बार-बार इधर उधर घूमता है या बैठे-बैठे सिर, पैर और पूँछ हिलाया करता है, करवटें बदलता रहता है, इससे पानी अस्वच्छ बन जाता है, फिर मल और मूत्र करके अधिक गन्दा बना देता है। इसके बाद जल पीता है, जिससे उसे भी स्वच्छ जल नहीं मिलता और दूसरों को भी स्वच्छ जल पीने में अन्तराय पड़ती है। कुछ श्रोता भी इसी प्रकार के होते हैं। वे व्याख्यान स्थल में चुपचाप स्थिर नहीं बैठते या तो इधर-उधर घूमते रहते हैं या बैठकर इधर-उधर हिलते डुलते और देखते रहते हैं या इधर-उधर की बातें करने लग जाते हैं अथवा अप्रासंगिक प्रश्न छेड़ देते हैं, व्यर्थ की कुतर्क करने लग जाते हैं या जान-बूझकर सीधे सरल प्रश्न को लम्बाने और घुमाने का प्रयत्न करते हैं।
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