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________________ २२ अजीव तो है नहीं कि पढ़ाने से भी नहीं पढ़े। यदि उचित विधि से पढ़ाना आता हो, तो किसे नहीं पढ़ाया जा सकता? यदि पढ़ाने से कोई न पढ़े, तो समझना चाहिए कि पढ़ाने वाले में ही कहीं कोई दोष है । ' वे दृष्टांत भी देने लगे कि - 'जैसे गायें यदि कहीं गिर या डूब जाती हैं, तो यह गायों का दोष नहीं, वरन् गाय चराने वाले ग्वाले का ही दोष है कि उन्हें विधि से सन्मार्ग पर नहीं चलाता।' वृद्ध आचार्यश्री ने यह देख सुनकर अपना वह शिष्य उस आचार्य को सौंप दिया। युवक आचार्य ने बड़े यत्न से उसे पढ़ाना आरम्भ किया, परन्तु मुद्गशैल के समान स्वभाव वाला वह शिष्य, अपनी न पढ़ने की वृत्ति से विचलित नहीं हुआ। दिन पर दिन निकल गये, पर उसने एक भी अक्षर नहीं सीखा। अन्त में उस युवक आचार्य को ही प्रतिज्ञा भ्रष्ट होना पड़ा। वे प्रतिभाशाली 'बहुश्रुत युवक आचार्य समझ गये कि - 'वृद्ध आचार्यश्री का कथन सत्य था।' उन्होंने आचार्यश्री से अपने अविनय की क्षमा याचना की और चले गये । नन्दी सूत्र इस प्रकार मुद्गल के समान जो जीव हों, उन्हें अध्ययन नहीं कराना चाहिए। जैसे - बांझ गाय के सर, श्रृंग, मुँह, पीठ, पेट, पूँछ आदि पर स्नेह से हाथ फैरने पर भी वह कभी दूध देती, इसी प्रकार ऐसे जीवों को सम्यग् विधि से पढ़ाने पर भी वे तथा स्वभाव के कारण एक अक्षर भी नहीं सीख पाते। इसलिए उन्हें सिखाने से कोई उपकार नहीं हो सकता । उनके उपकार की बात एक ओर रखिये। उल्टी आचार्य और अध्ययन की ही अपकीर्ति हो सकती है कि " इस आचार्य में पढ़ाने के सम्यक् कौशल का अभाव है अथवा यह अध्ययन ही समीचीन नहीं है, अन्यथा यह शिष्य एक अक्षर भी क्यों नहीं समझता !' दूसरी हानि यह है कि इस प्रकार के कुशिष्य कुछ भी समझ नहीं पाते । अतः आचार्यश्री को भी उत्तरोत्तर विशिष्ट सूत्र में अवगाहन करने का अवसर नहीं आता, जिससे धीरे-धीरे वे स्वयं शास्त्रों के किये कराये विशिष्ट सूत्रार्थ को भूल जाते हैं।' तीसरी हानि यह है कि - 'जो दूसरे योग्य मेधावी शिष्य होते हैं, उन्हें ज्ञान लेने का अवसर प्राप्त नहीं होता और आचार्य का विशिष्ट सूत्रार्थ, विस्मृत हो जाने के कारण उन्हें विशिष्ट सूत्रार्थ की प्राप्ति नहीं हो पाती। अतएव ऐसे मुद्गशैल ( मगशैलिये) के समान अपरिणामी शिष्यों को सूत्रार्थ नहीं देना चाहिए । इसके विपरीत काली मिट्टी का दृष्टांत है। काली मिट्टी पर यदि थोड़ी भी वर्षा हो तो पानी टिकता है । वह पानी को व्यर्थ नहीं जाने देती । काली मिट्टी- १. पानी को टिकाती है २. कोमल बनती है ३. तृण आदि उत्पन्न करती है ४. बीज बोने के बीज युक्त बनती है ५. अंकुरित होती है और ६. गेहूँ आदि धान्य उत्पन्न करती है, इसी प्रकार जो शिष्य, काली मिट्टी के समान हों, जो Jain Education International - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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