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________________ २९२ ***** नन्दी सूत्र प्रश्न वह लोकोत्तर भाव अनुज्ञा क्या है ? उत्तर जैसे - कोई आचार्य, उपाध्याय यावत् गणावच्छेदक हैं, वे किसी शिष्य या शिष्या पर किसी विनय आदि कारण से सन्तुष्ट होने पर कालोचित् ज्ञानादिगुण के योग्य, विनीत, क्षमादि दस भेद वाले साधु धर्म में प्रधान, सुशील शिष्य को विशुद्ध तीन करण और तीन योग से भाव पूर्वक १. आचारांग २. सूत्रकृतांग ३. स्थानांग ४. समवायांग ५. व्याख्याप्रज्ञप्ति अंग ६. ज्ञाताधर्मकथांग ७. उपासकदसांग ८. अंतकृतदसांग ९. अनुत्तरौपपातिक अंग १०. प्रश्नव्याकरण अंग ११. विपाकश्रुत अंग १२. दृष्टिवाद अंग की या सर्व द्रव्य, सर्व गुण, सर्व पर्यव युक्त सर्व अनुयोग- व्याख्यान की अनुज्ञा देते हैं अर्थात् आचारांग आदि सम्बन्धी सूत्र, अर्थ धारणा आदि को धारणा करने की और दूसरों को देने की अनुमति देते हैं या इस विषयक पूर्व में जो सूत्र, अर्थ धारणा आदि देने की, शिष्य - शिष्या ने याचना की थी, वह पूरी करते हैं, वह लोकोत्तर भाव अनुज्ञा है। यह भाव अनुज्ञा है। - किमण्णा कस्सऽणुण्णा, केवइयकालं पवत्तियाणुण्णा ? आइगरे पुरिमताले, पवत्तिया उसंहसेणस्स ॥ १ ॥ प्रश्न १. अनुज्ञा क्या है? २. अनुज्ञा किसे दी गई और ३. अनुज्ञा कब से प्रवर्तित हुई ? उत्तर - सबसे पहले आदिकर श्री ऋषभदेव भगवान् ने पुरिमताल नगर में, श्री ऋषभसेन ( अपर नाम पुंडरीक) नामक प्रथम गणधर को अनुज्ञा दी अर्थात् सूत्र आदि को धारण करने की और दूसरों को सिखलाने की आज्ञा दी। १ अणुण्णा २ उण्णमणी ३ णमणी, ४ णामणि ५ ठवणा ६ भावे ७ पभावणं ८ पयारो । ९ तदुभयहियं १० मज्जाया; ११ णाओ १२ कप्पो य १३ मग्गो य ॥ २ ॥ १४ संग्रह १५ संवर १६ णिज्जर, १७ ट्ठिइकरणं चेव १८ जीववुड्डिपयं । १९ पय २० पवरं चेव तहा, Jain Education International वीरमण्णा णामाई ॥ ३ ॥ तं अण्णा नंदी | अणुण्णा नंदी समत्ता । अर्थ - अनुज्ञा के ये एकार्थक, नाना घोष और नाना व्यञ्जन वाले २० नाम हैं - ***** For Personal & Private Use Only १. अनुज्ञा www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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