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________________ अनुज्ञा नंदी ........................***** २९१ से किं तं भावाणुण्णा? भावाणुण्णा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - १ लोइया २ कुप्पावयणिया ३ लोगुत्तरिया। प्रश्न - वह भाव अनुज्ञा क्या है? उत्तर - (उपयोग सहित अनुज्ञा पद के ज्ञाता को अथवा अनुज्ञा नंदी आगम के ज्ञाता को'भाव अनुज्ञा' कहते हैं। अथवा भाव विषयक अनुज्ञा को भाव अनुज्ञा कहते हैं।) भाव अनुज्ञा के तीन भेद हैं - १. लौकिक २. कुप्रावचनिक और ३. लोकोत्तरिक। से किं तं लोइया भावाणुण्णा? लोइया भावाणुण्णा-से जहाणामए राया इ वा, जुवराया इ वा जाव रुटे समाणे, कस्सइ कोहाइभावं अणुजाणिज्जा। से त्तं लोइया भावाणुण्णा। प्रश्न - वह लौकिक भाव अनुज्ञा क्या है? उत्तर - (जो लौकिक गुरुजन, भाव विषयक अनुज्ञा देते हैं, वह लौकिक भाव अनुज्ञा है) जैसे-कोई राजा, युवराज यावत् सार्थवाह है। वे किसी पर किसी अविनय आदि कारण से रुष्ट होकर, क्रोध आदि भाव से अनुज्ञा देते हैं अर्थात् उन पर क्रोध आदि करते हैं, कटुतम शब्द कहते हैं, मृत्यु दण्ड आदि देते हैं, वह लौकिक भाव अनुज्ञा है। ... से किं तं कुप्यावयणिया भावाणुण्णा? कुप्पावयणिया भावाणुण्णा, से जहाणामए केइ आयरिए इ वा, उवज्झाए इ वा, जाव कस्स वि कोहाइभावं अणुजाणिज्जा। सेत्तं कुप्पावयणिया भावाणुण्णा। प्रश्न - वह कुप्रावचनिक भाव अनुज्ञा क्या है? उत्तर - जैसे - कोई कुप्रावनिक आचार्य, उपाध्याय आदि हैं, वे किसी पर किसी अविनय आदि कारणों से रुष्ट होकर क्रोध आदि भाव से अनुज्ञा देते हैं अर्थात् क्रोध आदि करते हैं, कटुतम शब्द कहते हैं, मृत्यु दण्ड आदि देते हैं, वह कुप्रावचनिक भाव अनुज्ञा है। से किं तं लोगुत्तरिया भावाणुण्णा? लोगुत्तरिया भावाणुण्णा-से जहाणामए आयरिए इ वा, कम्मि कारणे तुडे समाणे कालोचियणाणाइ-गुण-जोगिणो, विणीयस्स खमाइप्पहाणस्स सुसीलस्स सीसस्स तिविहेणं तिकरणसुद्धेणं भावेणं आयारं वा, सुयगडं वा, ठाणं वा, समवायं वा, विवाहपण्णत्ति वा, णायाधम्मकहा वा, उवासगदसाओ वा, अंतगडदसाओ वा, अणुत्तरोववाइयदसाओ वा, पण्हावागरणं वा, विवागसुयं वा, दिट्ठिवायं वा, सव्व-दव्व-गुण-पज्जवेहिं सव्वाणुओगं वा, अणुजाणिज्जा। से तं लोगुत्तरिया भावाणुण्णा। से तं भावाणुण्णा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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