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नन्दी सूत्र
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(१०) सार्थवाह-देशान्तर में माल ले जाकर बेचने वाला व्यापारी है, वह किसी सेवक आदि पर किसी सेवा आदि कार्य को ले कर सन्तुष्ट होने पर अश्व (उत्तम घोड़ा), हाथी, ऊँट, बैल, गधा, घोड़ा (सामान्य घोड़ा), बकरा, मेंढा, दास अथवा दासी की अनुज्ञा देता है उसकी सेवा के अनुरूप इन वस्तुओं में से कोई वस्तु उसे पारितोषिक रूप में देना योग्य जानकर देता है अथवा इस सम्बन्ध । में सेवक आदि ने जो पहले याचना की थी, उसे स्वीकृति देकर पूर्ण करता है, वह 'सचित्त लौकिक द्रव्य अनुज्ञा' है।
से किं त्तं अचित्ता लोइया दव्वाणुण्णा? अचित्ता लोइया दव्वाणुण्णा-से जहाणामए राया इ वा, जुवराया इ वा, ईसरे इ वा, तलवरे इ वा, माडंबिए इ वा, कोडुम्बिए इ वा, इब्भे इ वा, सेट्ठी इ वा, सेणावई इ वा, सत्थवाहे इवा, कस्सइ कम्मि कारणे तुढे समाणे असणं वा, सयणं वा, छत्तं वा, चामरं वा, पडं वा, मउडं वा, हिरण्णं वा, सुवण्णं वा, कंसं वा, दूसं वा, मणिमोत्तिय-संखसिलप्पवालरत्तरयणमाईयं संतसार-सावएज्जं अणुजाणिज्जा। से त्तं अचित्ता लोइया दव्वाणुण्णा।
प्रश्न - वह अचित्त लौकिक द्रव्य अनुज्ञा क्या है ?
उत्तर - जैसे मान लो कोई राजा, युवराज, ईश्वर, तलवर, माडम्बिक, कौटुम्बिक, इभ्य, सेठ, सेनापति या सार्थवाह हैं, वे किसी को किसी कारण से सन्तुष्ट होकर आसन (बैठने योग्य सिंहासन आदि), शयन (सोने योग्य पालकी आदि), छत्र, चामर, पट (सामान्य वस्त्र), मुकुट, चाँदी, सोना, कांसा, दुष्य (उत्तम-वस्त्र), मणि, मोती, शंख, शिला, प्रवाल, रक्तरत्न (लाल) आदि धन की सारभूत वस्तुओं की अनुज्ञा देते हैं अर्थात् पारितोषिक के रूप में देते हैं या पूर्व की याचना पूर्ण करते हैं, वह-'अचित्त लौकिक द्रव्य अनुज्ञा' है।
प्रश्न - मणि आदि सचित्त हैं, अचित्त अनुज्ञा में उनका कथन कैसे? - उत्तर - यहाँ मणि आदि अचित्त लेना चाहिए अथवा लोक में इन्हें अचित्त मानते हैं। अतएव मणि आदि को सचित्त होते हुए भी लोकनय से अचित्त कहा समझना चाहिए।
से किं तं मीसिया लोइया दव्वाणुण्णा? मीसिया लोइया दव्वाणुण्णा-से जहाणामए, राया इ वा, जुवराया इ वा, ईसरे इ वा, तलवरे इ वा, माडंबिए इ वा, कोडुबिए इ वा, इब्भे इ वा, सेट्ठी इवा, सेणावई इवा, सत्थवाहे इवा, कस्सइ कम्मि कारणे तुढे समाणे हत्थिं वा, मुदु-भंडगमंडियं, आसं वा, (वेसरं वा वसहं वा) घासग-चामर-मंडियं, सकडयं दासं दासिं वा, सव्वालंकार-विभूसियं अणुजाणिज्जा। से त्तं मीसिया लोइया दव्वाणुण्णा। से त्तं लोइया दव्वाणुण्णा।
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