SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 302
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुज्ञा नंदी २८५ ** * * * ** * *** * ** * ************************************************* अनुज्ञा नन्दी को सीखेगा, उसे भविष्य की अपेक्षा 'अनुज्ञा' कह सकते हैं। यह भव्य शरीर द्रव्य अनुज्ञा है। - से किं तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वइरित्ता दव्वाणुण्णा? जाणगसरीरभवियसरीर-वइरित्ता दव्वाणुण्णा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-१ लोइया २ कुप्यावयणिया ३. लोउत्तरिया। प्रश्न - वह ज्ञायक-शरीर भव्य-शरीर व्यतिरिक्त द्रव्य अनुज्ञा क्या है? (द्रव्य विषयक अनुज्ञा को, ज्ञायक-शरीर भव्य-शरीर व्यतिरिक्त द्रव्य अनुज्ञा कहते हैं।) उत्तर - ज्ञायकशरीर भव्यशरीर व्यतिरिक्त द्रव्य अनुज्ञा के तीन भेद हैं। यथा - १. लौकिक, २. कुप्रावचनिक और ३. लोकोत्तरिक। से किं तं लोइया दव्वाणुण्णा? लोइया दव्वाणुण्णा तिविहा पण्णत्ता, तं जहा१. सचित्ता २. अचित्ता ३. मीसिया। प्रश्न - वह लौकिक द्रव्य अनुज्ञा क्या है ? (लौकिक गरुजन. द्रव्य विषयक अनज्ञा देते हैं, वह 'लौकिक द्रव्य अनुज्ञा' है।) उत्तर - लौकिक द्रव्य अनुज्ञा के तीन भेद हैं - १. सचित्त २. अचित्त और ३. मिश्र। से किं तं सचित्ता लोइया दव्वाणुण्णा? सचित्ता लोइया दव्वाणुण्णा - से जहाणामए राया इ वा, जुवराया इ वा, ईसरे इ वा, तलवरे इ वा, माडंबिए इ वा, कोडुबिए इ वा, इब्भे इ वा, सेट्ठी इ वा, सेणावई इ वा, सत्थवाहे इ वा, कस्सइ कम्मि कारणे तुढे समाणे आसं वा, हत्थिं वा, उड़े वा, गोणं वा, खरं वा, घोडयं वा, अयं वा, एलयं वा, दासं वा, दासिं वा, अणुजाणिज्जा। सेत्तं 'सचित्ता लोइया दव्वाणुण्णा।' प्रश्न - वह लौकिक सचित्त द्रव्य अनुज्ञा क्या है ? . उत्तर - जैसे - मान लो कोई (१) राजा है या (२) युवराज है, (३) ईश्वर है-बड़ा अधिकारी है, (४) तलवर है-कोटपाल है, (५) माडम्बिक है-जिसकी चारों दिशा में ढाई योजन तक गाँव नहीं है, ऐसे गाँव का स्वामी है, (६) कौटुम्बिक है-बहुत विस्तृत कुटुम्ब का स्वामी है, (७) इभ्य है (उस पार रहा हुआ अंबाड़ी सहित हाथी, इस पार रहे. हुए मनुष्य को, मध्य में जितनी बड़ी धनराशि बनाने पर दिखाई देना बन्द हो जाय, ऐसी बड़ी रजतराशि, सुवर्णराशि या रत्नराशि का स्वामी है), (८) सेठ है (लक्ष्मी देवी से अनुग्रहीत धनपति है), (९) सेनापति है, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy