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________________ २७२ ********* नन्दी सूत्र शाश्वत संसारी कहे हैं। ११. अनन्त सिद्ध कहे हैं-अनन्त जीव मोक्ष में पहुंचे हुए कहे हैं। १२. अनन्त असिद्ध कहे हैं-अनन्त जीव संसार में परिभ्रमण करते हुए कहे हैं। अब सूत्रकार इन बारह बोलों को सरलता से स्मरण में रखने के लिए संग्रहणी गाथा कहते हैं। भावमभावा हेऊमहेऊ, कारणमकारणे चेव। जीवाजीवा भवियमभविया, सिद्धा असिद्धा य॥ ९२॥ अर्थ - द्वादशांग में १. भाव २. अभाव ३. हेतु ४. अहेतु ५. कारण ६. अकारण ७. जीव ८. अजीव ९. भव्य १०. अभव्य ११. सिद्ध और १२. असिद्ध का कथन किया है। विराधना का कुफल अब सूत्रकार द्वादशांग गणिपिटक का फल बताते हैं। इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं तीए काले अणंता जीवा आणाए विराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं अणुपरियट्टिसु। अर्थ - इस द्वादशांग गणिपिटक महाराजाधिराज की आज्ञा की विराधना करके अतीत-भूतकाल में अनन्त जीवों ने 'चातुरन्त संसार कान्तार में'-चार गति वाली संसार अटवी में, अनन्तकाल अनुपर्यटन किया। इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं पडुप्पण्णकाले परित्ता जीवा आणाए विराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं अणुपरियटृति। ___अर्थ - इस द्वादशांग गणिपिटक महाराजाधिराज की आज्ञा की विराधना करके प्रत्युत्पन्नवर्तमान काल में परित्त जीव, चातुरन्त संसार कान्तार में अनुपर्यटन कर रहे हैं। . इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं अणागए काले अणंता जीवा आणाए विराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं अणुपरियट्टिस्संति। अर्थ - इस द्वादशांग गणिपिटक महाराजाधिराज की आज्ञा की विराधना करके अनागतभविष्यकाल में अनन्त जीव, चातुरन्त संसार कान्तार में अनुपर्यटन करेंगे। - आराधना का सुफल इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं तीए काले अणंता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं वीईवइंस। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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