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________________ श्रुत ज्ञान के भेद-प्रभेद - दृष्टिवाद २५९ *********** प्रश्न - वह परिकर्म क्या है? उत्तर - परिकर्म के मूल भेद सात हैं। वे इस प्रकार हैं १. सिद्ध-श्रेणिका परिकर्म २. मनुष्य-श्रेणिका परिकर्म ३. पृष्ट-श्रेणिका परिकर्म ४. अवगाढ़श्रेणिका परिकर्म ५. उपसंपादान-श्रेणिका परिकर्म ६. विप्रजहन-श्रेणिका परिकर्म ७. च्युत-अच्युतश्रेणिका परिकर्म। विवेचन - दृष्टिवाद के उत्तरवर्ती चार भेद - १. सूत्र २. पूर्वगत ३. अनुयोग और ४. चूलिका के सूत्रार्थ को ग्रहण करने की योग्यता संपादन करने में कारणभूत भूमिका रूप शास्त्र को 'परिकर्म' कहते हैं। __दृष्टान्त - जैसे गणित शास्त्र में पहले अंक, गिनती, पहाड़े, जोड़, बाकी, गुणा, भाग आदि सीखे बिना शेष गणित शास्त्र सीखा नहीं जा सकता। इन्हें सीखने पर ही उन्हें सीखा जा सकता है, वैसे ही दृष्टिवाद में पहले परिकर्म शास्त्र को सीखे बिना दृष्टिवाद के शेष भेदों को सीखा नहीं जा सकता, परिकर्म शास्त्र सीखने पर ही आगे सीखा जा सकता है। - अब सूत्रकार परिकर्म के इन मूल भेदों के उत्तर भेद बतलाते हैं। से किं तं सिद्धसेणियापरिकम्मे? सिद्धसेणियापरिकम्मे चउद्दसविहे पण्णत्ते, तं जहा - १. माउगापयाई २. एगट्ठियपयाइं ३. अट्ठपयाइं ४. पाढोआगासपयाइं ५. केउभूयं ६. रासिबद्धं ७. एगगुणं ८. दुगुणं ९. तिगुणं १०. केउभूयं ११. पडिग्गहो १२. संसारपडिग्गहो १३. णंदावत्तं १४. सिद्धावत्तं। से त्तं सिद्धसेणियापरिकम्मे। प्रश्न - वह सिद्धश्रेणिका परिकर्म क्या है? उत्तर - सिद्धश्रेणिका परिकर्म के चौदह भेद हैं। वे इस प्रकार हैं - १. मातृका पद - मूल शब्द २. एकार्थिक पद - पर्यायवाची शब्द ३. अर्थपद - शब्दार्थ. ४. पृथक् आकाश पद-विस्तृत अर्थ ५. केतुभूत-शिखर स्वरूप ६. राशिबद्ध - वर्गीकृत ७. एकगुण ८. द्वि-गुण ९. त्रिगुण १०. केतुभूत ११. प्रतिग्रह १२. संसार प्रतिग्रह १३. नन्दावर्त और १४. सिद्ध आवर्त। यह सिद्ध श्रेणिका परिकर्म है। से किं तं मणुस्ससेणियापरिकम्मे? मणुस्ससेणियापरिकम्मे चउद्दसविहे पण्णत्ते, तं जहा - १. माउयापयाई २. एगट्टियपयाई ३. अट्ठपयाई ४. पाढोआगासपयाई ५. केउभूयं ६. रासिबद्धं ७. एगगुणं ८. दुगुणं ९. तिगुणं १०. केउभूयं ११. पडिग्गहो १२. संसारपडिग्गहो १३. णंदावत्तं १४. मणुस्सावत्तं। सेत्तं मणुस्ससेणियापरिकम्मे। - प्रश्न - वह मनुष्यश्रेणिका परिकर्म क्या है? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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