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________________ २५८ नन्दी सूत्र *********************************************** ******* से एवं आया, एवं णाया, एवं विण्णाया, एवं चरणकरणपरूवणा आघविज्जइ। से त्तं विवागसुयं ॥५६॥ अर्थ - क्रिया की अपेक्षा-विपाकश्रुत पढ़ने वाला विपाक श्रुत का जैसा स्वरूप कहा है उसी स्वरूप वाला-साक्षात् मूर्तिमान विपाकश्रुत बन जाता है। ज्ञान की अपेक्षा विपाक श्रुत में जैसी व्याख्या की है उसका वह ज्ञाता और विज्ञाता बन जाता है। इस प्रकार विपाक श्रुत में चरण करण की प्ररूपणा कही जाती है। यह विपाकश्रुत है। विशेष - ग्यारह अंगों के पदों का योग दुगुने-दुगुने की गिनती से ३ करोड ६८ लाख ४६ सहस्र है। वर्तमान में मात्र ३५ सहस्र ६ सौ २६ श्लोक परिमाण अक्षर रहे हैं। अब सूत्रकार, श्रुतपुरुष के मस्तकभूत ऐसे बारहवें अंग का परिचय देते हैं १२. दृष्टिवाद से किं तं दिट्ठिवाए ? दिट्ठवाएणं सव्वभावपरूवणा आघविज्जइ, से समासओ पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-१. परिकम्मे २. सुत्ताई ३. पुव्वगए ४. अणुओगे ५. चूलिया। . प्रश्न - वह दृष्टिवाद क्या है ? उत्तर - (किसी भी द्रव्य में-पदार्थ में, रहे हुए द्रव्यत्व, अनन्तगुण तथा अनन्तपर्याय में से किसी एक को मुख्य करके तथा अन्य को गौण करके जानना, देखना, समझना, कहना 'नय' है। जैसे - जीव के जन्ममरणादि को मुख्य करके जीव को 'अनित्य' अथवा भवभवान्तर में अविनाशीपन को मुख्य करके 'नित्य' कहना 'नय' है। जिसमें सभी नय-दृष्टियों का कथन हो, उसे 'दृष्टिवाद' कहते हैं।) विषय - दृष्टिवाद में सभी भावों की-सर्वद्रव्य, गुण पर्यायों की प्ररूपणा कही जाती है। भेद - दृष्टिवाद के संक्षेप में पांच भेद इस प्रकार हैं - . १. परिकर्म-योग्यता संपादन की भूमिका २. सूत्र-विषय सूचना अनुक्रमणिका ३. पूर्वगत - मुख्य प्रतिपाद्य विषय ४. अनुयोग - अनुकूल दृष्टान्त कथानक ५. चूलिका-उक्त अनुक्त संग्रह। से किं तं परिकम्मे ? परिकम्मे सत्तविहे पण्णत्ते, तंजहा - १. सिद्धसेणियापरिकम्मे २. मणुस्ससेणियापरिकम्मे ३. पुट्ठसेणियापरिकम्मे ४. ओगाढसेणियापरिकम्मे ५. उवसंपजणसेणियापरिकम्मे ६. विप्पजहणसेणियापरिकम्मे ७. चुयाचुयसेणियापरिकम्मे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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