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श्रुत ज्ञान के भेद-प्रभेद - प्रश्नव्याकरण
(वर्तमान में पाँच आत्रैव और पाँच संवर द्वार का वर्णन उपलब्ध है ।)
पण्हावागरणाणं परित्ता वायणा, संखेज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ णिज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ।
अर्थ प्रश्नव्याकरण में परित्त वाचनाएं, संख्येय अनुयोग द्वार, संख्येय वेष्ट, संख्येय श्लोक, संख्येय नियुक्तियाँ, संख्येय संग्रहणियाँ और संख्येय प्रतिपत्तियाँ हैं ।
सेणं अंगट्टयाए दसमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, पणयालीसं अज्झयणा, पणयालीसं उद्देसणकाला, पणयालीसं समुद्देसणकाला ।
अर्थ - यह अंगों में दसवाँ अंग है। इसका एक श्रुतस्कंध है । ४५ अध्ययन हैं । ४५ उद्देशनकाल और ४५ समुद्देशनकाल हैं ।
( वर्तमान में दो श्रुतस्कंध हैं । १० अध्ययन हैं - पहले श्रुतस्कंध में १. प्राणातिपात २. मृषावाद ३. अदत्तादान ४. अब्रह्म और ५. परिग्रह, ये पाँच अध्ययन हैं। जिनमें पाँच आस्रवों के - १. स्वरूप २. नाम ३. क्रिया ४. फल और ५. कर्त्ता, इन पाँच का वर्णन किया है। दूसरे श्रुतस्कंध में १. अहिंसा २. सत्य ३. दत्त ४. ब्रह्मचर्य और ५. अपरिग्रह, ये पाँच अध्ययन हैं। जिनमें पाँच संवरों के - १. स्वरूप २. नाम ३. भावना ४. फल और ५. कर्त्ता का वर्णन किया है । १० उद्देशनकाल हैं, १० समुद्देशनकाल हैं ।).
संखेज्जाई पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा ।
अर्थ संख्यात सहस्र पद हैं। संख्येय (वर्तमान में १३०० श्लोक परिमाण) अक्षर हैं । अनन्त गम हैं, अनन्त पर्यव हैं, परित्त त्रस हैं, अनन्त स्थावर हैं ।"
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सासयकडणिबद्धणिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जंति, पण्णविज्जंति, परूविज्जंति, दंसिज्जंति, णिदंसिज्जंति, उवदंसिज्जंति ।
अर्थ - शाश्वत और कृत पदार्थों के विषय निबद्ध और निकाचित जिन प्रज्ञप्त भाव कहे जाते हैं, प्रज्ञप्त किये जाते हैं, प्ररूपित किये जाते हैं, दर्शित किये जाते हैं, निदर्शित किये जाते हैं और उपदर्शित किये जाते हैं ।
से एवं आया, एवं णाया, एवं विण्णाया, एवं चरणकरणपरूवणा आघविज्जइ । से त्तं पण्हावागरणाई ॥ ५४ ॥
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