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________________ २५४ . . नन्दी सूत्र . --- - --- ----- -- : अर्थ - संख्येय सहस्र पद हैं। संख्येय (वर्तमान में १९२ श्लोक परिमाण) अक्षर हैं। अनन्त गमं हैं, अनन्त पर्यव हैं। परित्त त्रस हैं। अनन्त स्थावर हैं। . सासयकडणिबद्धणिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जति, पण्णविजंति, परूविजंति, दंसिज्जंति, णिदंसिज्जंति, उवदंसिज्जंति। __ अर्थ - शाश्वत और कृत पदार्थों के विषय निबद्ध और निकाचित जिन प्रज्ञप्त भाव कहे जाते हैं, प्रज्ञप्त किये जाते हैं, प्ररूपित किये जाते हैं, दर्शित किये जाते हैं, निदर्शित किये जाते हैं और . उपदर्शित किये जाते हैं। से एवं आया, एवं णाया, एवं विण्णाया, एवं चरणकरणपरूवणा आघविज्जइ, से त्तं अणुत्तरोववाइयदसाओ॥५४॥ अर्थ - अनुत्तरौपपातिक पढ़ने वाला इस प्रकार ज्ञाता और इसी प्रकार विज्ञाता होता है। अनुत्तरौपपातिक में चरण करण की प्ररूपणा है। यह अनुत्तरौपपातिकदसा का स्वरूप है। अब सूत्रकार दसवें अंग का परिचय देते हैं। १०. प्रश्नव्याकरण से किं तं पण्हावागरणाइं? पण्हावागरणेसु णं अद्भुत्तरं पसिणसयं, अद्रुत्तरं अपसिणसयं, अलुत्तर पसिणापसिणसयं; तं जहा - अंगुटुपसिणाई, बाहुपसिणाई, अदागपसिणाइं; अण्णेवि विचित्ता विज्जाइसया, णागसुवण्णेहिं सद्धिं दिव्वा संवाया आघविजंति। प्रश्न - वह प्रश्नव्याकरण क्या है ? (जिसमें प्रश्न का व्याकरण अर्थात् उत्तर हो, उसे 'प्रश्नव्याकरण' कहते हैं)। उत्तर - प्रश्नव्याकरण में १०८ प्रश्न-सविधि जपने से पूछने पर तीनों काल की शुभ-अशुभ कहने वाली विद्या, १०८ अप्रश्न-सविधि जपने पर बिना पूछे तीनों काल की शुभ-अशुभ कहने वाली विद्या, १०८ प्रश्न-अप्रश्न-सविधि जपने पर पूछने पर या बिना पूछे भी तीनों काल का शुभाशुभ कहने वाली विद्याएँ कही जाती हैं। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं-१. अंगुष्ठ प्रश्न-अंगूठे से ही प्रश्न के शुभाशुभ फल का सुनाई देना २. बाहुप्रश्न-बाहु से ही प्रश्न के शुभाशुभ फल का सुनाई देना ३. आदर्श प्रश्न-दर्पण में शुभाशुभ फल का दरय दिखाई देना आदि। इनसे अन्य भी सैकड़ों विचित्र विद्याएँ और विद्याओं के अतिशय कहे जाते हैं तथा मुनियों के जो नागकुमार, स्वर्णकुमार आदि के साथ दिव्य संवाद हुए, वे कहे जाते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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