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नन्दी सूत्र
प्रश्न- गणधर महाराज, तीर्थंकर भगवान् द्वारा त्रिपदी सुनकर सर्वप्रथम चौदह पूर्वात्मक बारहवें दृष्टिवाद अंग की रचना करते हैं, फिर आचार आदि अंगों की रचना करते हैं, तो आचार प्रथम अंग कैसे ?
उत्तर शिष्यों की ज्ञान शक्ति आदि का विचार करके अभ्यास क्रम में पहले आचारांग
की स्थापना करते हैं । अतः स्थापना के आश्रित आचारांग को पहला अंग कहा है।
इसके दो श्रुतस्कंध हैं। पहले श्रुतस्कंध का नाम ब्रह्मचर्य है और दूसरे श्रुतस्कंध का नाम . 'आचारांग' या 'सदाचार' है।
पच्चीस अध्ययन हैं। पहले श्रुतस्कंध में नौ अध्ययन हैं - १. शस्त्रपरिज्ञा, २. लोक-विजय, ३. शीतोष्णीय, ४. सम्यक्त्व, ५. लोकसार, ६. धूत, ७. महापरिज्ञा, ८. विमोह और ९ उपधानश्रुत । अभी ७ वाँ (अन्य धारणानुसार ९ वाँ ) महापरिज्ञा अध्ययन सर्वथा व्यवच्छिन्न हो चुका है। दूसरे श्रुतस्कंध में सोलह अध्ययन हैं - १. पिण्डैषणा, २. शय्याएषणा, ३. ईर्या, ४. भाषा, ५. वस्त्रैषणा, ६. पात्रैषणा, ७. अवग्रह प्रतिमा, ८ स्थान नैषेधिका, १०. उच्चार प्रस्रवण, ११. शब्द, १२. रूप, १३. परक्रिया, १४. अन्योन्य क्रिया, १५. भावना और १६. विमुक्ति । ये सब २५ अध्ययन हुए । दूसरे श्रुतस्कंध के पहले से ७ वाँ - सात अध्ययनों को पहली चूला, ८ वें से १४ वाँ - इन सात अध्ययनों को दूसरी चूला, १५ वें अध्ययन को तीसरी चूला और १६ वें अध्ययन को चौथी चूला कहते हैं ।
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८५ उद्देशक हैं। पहले श्रुतस्कंध के ५१ उद्देशक हैं, यथा- शस्त्रपरिज्ञा के ७, लोकविजय के ६, शीतोष्णीय के ४, सम्यक्त्व के ४, लोकसार के ६, धूत के ५, महापरिज्ञा के ७, विमोह के ८ और उपधानश्रुत के ४ | ये सब ५१ । दूसरे श्रुतस्कंध के ३४ उद्देशक हैं - पिण्डैषणा के ११, शय्याएषणा के ३, ईर्या के ३, भाषा के २, वस्त्र के २, पात्र के २, अवग्रह के २ शेष नौ के एक-एक के प्रमाण से ९, ये ३४ हुए। दोनों श्रुतस्कंध के सब ८५ उद्देशक हुए ।
पद समुदाय को 'उद्देशक' कहते हैं । उद्देशक समुदाय को 'अध्ययन' कहते हैं। अध्ययन समुदाय को 'वर्ग' कहते हैं। वर्ग समुदाय को 'श्रुतस्कंध' कहते हैं और श्रुतस्कंध के समुदाय को 'सूत्र' कहते हैं ।
उद्देशक आदि की ये व्याख्याएँ सामान्य हैं। विशेष स्थलों पर इनकी प्रसंग के अनुसार व्याख्याएँ समझनी चाहिए।
८५ उद्देशन काल हैं। ८५ समुद्देशन काल हैं। गुरु पढ़ने की आज्ञा देते हैं और शिष्य पढ़ता है, उसे 'उद्देश' कहते हैं तथा यह कार्य जिस काल में होता है, उसे 'उद्देशनकाल' कहते हैं। गुरु जो पढ़े हुए
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