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श्रुत ज्ञान के भेद-प्रभेद - सम्यक् श्रुत
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प्रश्न - क्या अंगसूत्र ही सम्यक्श्रुत हैं ? शेष नहीं?
उत्तर - ये बारह सूत्र, अंग के अन्तर्गत होने से मूलभूत एवं प्रधान हैं, अतः इनका यहाँ उल्लेख किया है। वैसे अंगबाह्य जो आवश्यक आदि आगम हैं, वे भी 'सम्यक्श्रुत' हैं।
इच्चेयं दुवालसंगं गणिपिडगं चोहसपुव्विस्स सम्मसुयं, अभिण्णदसपुव्विस्स सम्मसुयं, तेण परं भिण्णेसु भयणा। से त्तं सम्मसुयं ॥ ४०॥ ___अर्थ - चौदह पूर्व के ज्ञाता अथवा कम से कम अभिन्न-पूर्ण, दस पूर्व के ज्ञाता को यह आचार्य कोष द्वादशांगी सम्यक्श्रुत में परिणत होती है (यह निश्चित है) और शेष. व्यक्तियों के लिए भजना=अनिश्चित है। यह सम्यक्श्रुत का प्ररूपण हुआ।
विवेचन - परिणति की अपेक्षा-इस प्रकार का यह बारह अंगों वाला गणिपिटक, चौदह पूर्वियों के लिए सम्यक्श्रुत है, उनसे उतरते-उतरते यावत् अभिन्न-पूर्ण, दस पूर्वियों के लिए भी सम्यक्श्रुत है, क्योंकि ऐसे ज्ञानी जीव, नियम से सम्यग्दृष्टि ही होते हैं। अतएव वे इस श्रुत को सम्यक् रूप में ही परिणत करते हैं।
जो मिथ्यादृष्टि होते हैं, वे मिथ्यादृष्टि रहते हुए कभी पूर्ण दस पूर्व नहीं सीख पाते, क्योंकि मिथ्यादृष्टि अवस्था का स्वभाव ही ऐसा है। जैसे अभव्यजीव, ग्रंथिदेश के निकट आकर भी ग्रंथिभेद नहीं कर पाता, वैसे ही मिथ्यादृष्टि जीव, श्रुत सीखते-सीखते कुछ कम दस पूर्व तक ही सीख . पाता है, पूरे दस पूर्व आदि नहीं सीख पाता। - जो दस पूर्व से कम के पाठी होते हैं, उनके लिए यह सम्यक्श्रुत हो, इसमें भजना है अर्थात् कभी यह सम्यक्श्रुत भी हो सकता है और कभी मिथ्याश्रुत भी हो सकता है। इसके चार भंग हैं
१. जिस आस्था आदि गुण वाले सम्यग्दृष्टि ने इन सम्बक्श्रुतों को-'ये सम्यक्श्रुत हैं'-इस सम्यक्श्रद्धा के साथ ग्रहण किया है, उसके लिए ये 'सम्यक्श्रुत' हैं। यह प्रथम भंग है।
२. और ये ही श्रुत जिस आस्था आदि गुण रहित मिथ्यादृष्टि ने इन सम्यक्श्रुतों को-'ये मिथ्याश्रुत हैं'-इस मिथ्या श्रद्धा के साथ ग्रहण किया है, उसके लिए मिथ्याश्रुत है। यह दूसरा भंग है।
३. सम्यग्दृष्टि के लिए भी ये ही मिथ्याश्रुत हैं। क्यों?' मिथ्यात्व में कारण बन जाते हैंइसलिए, क्योंकि कई सम्यग्दृष्टि, मिथ्यात्व मोहनीय के उदय के समय इन्हें पढ़-सुनकर सूक्ष्मार्थ समझने में न आने के कारण या उत्पन्न हुई शंका का निवारण न होने के कारण या नय, भंग, निक्षेप आदि समझ में न आने के कारण या दूसरों के द्वारा भ्रांति उत्पन्न करने के कारण या ऐसे ही अन्य कारणों से, इन सम्यक्श्रुतों को-'ये मिथ्याश्रुत हैं'-यों मिथ्या श्रद्धापूर्वक ग्रहण कर लेते हैं और सम्यग्दृष्टि को छोड़ देते हैं। यह तीसरा भंग है।
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