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________________ २१४ नन्दी सूत्र ........................ अब सूत्रकार श्रुतज्ञान के पांचवें और छठे भेद का स्वरूप वर्णन करते हैं। ५. सम्यक् श्रुत से किं तं सम्मसुयं? सम्मसुयं जं इमं अरिहंतेहिं भगवंतेहिं उप्पण्णणाणदंसणधरेहिं तेलुक्कणिरिक्खिय-महियपूइएहिं तीयपडुप्पण्णमणागयजाणएहिं सव्वण्णूहिं सव्वदरिसीहिं पणीयं दुवालसंगं गणिपिडगं। प्रश्न - वह सम्यक्श्रुत क्या है? उत्तर - केवलज्ञान, केवलदर्शन के धारक, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, भूत, भविष्य एवं वर्तमान के ज्ञाता, देव, दानव और मानव से वंदित, कीर्तित तथा पूजित, अरिहंत प्रभु से प्रणीत यह गणिपिटक (आचार्य-कोष) द्वादशांगी सम्यक्श्रुत है। _ विवेचन - जो देव गुरु और धर्म का, नवतत्त्व का, षड्द्रव्य का सम्यग् अनेकान्तवाद पूर्वक, पूर्वापर अविरुद्ध, यथार्थ सम्यग्ज्ञान है, जो सम संवेगादि को उत्पन्न करने वाला, सम्यक् अहिंसा, सम्यक् तप की प्रेरणा करने वाला, भव-भ्रमण का नाश करने वाला और मोक्ष पहुँचाने वाला श्रुत है, वह 'सम्यक्श्रुत' है। २. प्रवचन की अपेक्षा - जो अर्हन्त हैं-देवेन्द्र आदि के लिए भी पूज्य तीर्थंकर हैं। भगवन्त हैं-समग्र ऐश्वर्य आदि के स्वामी हैं। ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय कर्म के क्षय से उत्पन्न केवलज्ञान, केवलदर्शन के धारक हैं। तीनों लोक-देव, दानव, मानव के द्वारा निरीक्षित हैं-श्रद्धा भरे नयनों से देखे गये हैं। महित हैं-यथाअवस्थित असाधारण गुणों के द्वारा महान् माने गये हैं। पूजित हैं-पंचांग वन्दना आदि से नमस्कृत हैं, अतीत, प्रत्युपन्न और अनागत रूप तीनों काल को जानते हैं-ऐसे सर्वज्ञ सर्वदर्शी के प्रवचन 'सम्यक्श्रुत' हैं। ३. आगम की अपेक्षा - उन प्रवचनों को सुनकर प्रविशुद्धमति गणधरों द्वारा ग्रंथित, यह बारह अंगों वाला गणिपिटक-ज्ञान का कोष या आचार्य का कोष, 'सम्यक्श्रुत' है। तं जहा-१. आयारो, २. सूयगडो, ३. ठाणं, ४. समवाओ, ५. विवाहपण्णत्ती, ६. णायाधम्मकहाओ, ७. उवासगदसाओ, ८. अंतगडदसाओ, ९. अणुत्तरोववाइयदसाओ, १०. पण्हावागरणाई, ११. विवागसुयं, १२. दिट्ठिवाओ। अर्थ - (उस गणिपिटक के बारह अंग) इस प्रकार हैं-१. आचारांग, २. सूत्रकृतांग, ३. स्थानांग, ४. समवायांग, ५. व्याख्याप्रज्ञप्ति (उपनाम-भगवती), ६. ज्ञाताधर्मकथा, ७. उपासकदसा, ८. अन्तकृतदसा, ९. अनुत्तरौपपातिकदसा, १०. प्रश्नव्याकरण, ११. विपाक, १२. दृष्टिवाद। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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