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________________ श्रुत ज्ञान के भेद-प्रभेद - अनक्षर श्रुत २०९ प्रश्न - आत्मा आदि शब्दार्थ का ज्ञान श्रुतज्ञान है या मतिज्ञान? उत्तर - जब वाच्य-वाचक सम्बन्ध पर्यालोचनापूर्वक होता है, तब उसे 'श्रुतज्ञान' कहते हैं तथा जब वाच्य-वाचक संबंध पर्यालोचनारहित होता है, तब उसे 'मतिज्ञान' कहते हैं। प्रश्न - एकेन्द्रियों को भी श्रुत (अ)ज्ञान होता है ? उत्तर - हाँ, पर वह सोये हुए या मद्य में मत्त मूर्च्छित प्राणी के श्रुत ज्ञान के सदृश अव्यक्त होता है। जब वे एकेंद्रियादि जीव, क्षुधा-वेदन आदि के समय 'क्षुधा' शब्द और 'क्षुधा वेदना' इनमें निहित वाच्य-वाचक सम्बन्ध पर्यालोचना पूर्वक और 'मुझे भूख लगी है'-यों अन्तरंग शब्द उल्लेख सहित क्षुधा का वेदन करते हैं, तब उन्हें श्रुतज्ञान होता है, ऐसा समझना चाहिए। यह लब्धि अक्षरश्रुत है। यह अक्षरश्रुत है। २. अनक्षर श्रुत से किं तं अणक्खरसुयं? अणक्खरसुयं अणेगविहं पण्णत्तं, तं जहाऊससियं णीससियं, णिच्छूढं खासियं च छीयं च। णिस्सिंघियमणुसारं, अणक्खरं छेलियाईयं॥ ८८॥ से त्तं अणक्खरसुयं ॥ ३८॥ प्रश्न - वह अनक्षरश्रुत क्या है? उत्तर - अनक्षरश्रुत के अनेक भेद हैं।...१. श्वास लेना, २. श्वास छोड़ना, ३. थूकना ४. खांसना, ५. छींकना, ६. 'गूं-गूं' करना ७. अधोवायु करना, ८. सुड़सुड़ाना। ये अनक्षरश्रुत हैं। विवेचन - जो 'अ' 'क' आदि वर्ण रहित श्रुत है, उसे 'अनक्षर व्रत' कहते हैं। प्रश्न - उपर्युक्त सभी शाब्दिक क्रियाएँ द्रव्य-श्रुत के अन्तर्गत कब समझनी चाहिए? उत्तर - -: इन शाब्दिक क्रियाओं का प्रयोग करने वाले किसी अन्य जन को, किसी पदार्थ विशेष का ज्ञान कराने के अभिप्राय से, इन शाब्दिक क्रियाओं का प्रयोग करता है, तभी इन्हें द्रव्य श्रुतज्ञान के अन्तर्गत समझना चाहिए। जैसे मल त्याग करने के स्थान में मल त्याग करता हुआ पुरुष, अपनी उपस्थिति और उस अवस्था का, अन्य अनभिज्ञ पुरुष को ज्ञान कराने के अभिप्राय से, कंठ के द्वारा अवर्णात्मक विचित्र स्वर करता (खखारता) है, तो वह स्वर, द्रव्य श्रुतज्ञान के अन्तर्गत है, क्योंकि वह शब्द अन्य अनभिज्ञ पुरुष को उक्त पुरुष की स्थिति जानने रूप भाव श्रुतज्ञान में कारण बनता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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