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________________ २०८ नन्दी सूत्र ***************** शक्ति होती है, ऐसे लब्धि अक्षर वाले को ही अक्षर की लब्धि होती है (अक्षर का ज्ञान प्राप्त होता है।) भेद - लब्धिरूप अक्षर श्रुतज्ञान के छह भेद हैं। यथा १. श्रोत्र इंद्रिय लब्धि अक्षर - श्रोत्र इंद्रिय के निमित्त से उत्पन्न श्रुतज्ञान। जैसे-गुरु के द्वारा कहे हुए-'आत्मा है'-शब्द कान से सुनकर- आत्मा है' यह शब्द और 'अस्तित्ववान आत्मा'-पदार्थ गत वाच्य-वाचक सम्बन्ध को पर्यालोचना पूर्वक ('आत्मा है'-यों शब्दोल्लेखपूर्वक) अस्तित्ववान आत्मा का बोध होना अथवा शंख के शब्द को सुनकर 'शंख' शब्द और पदार्थगत वाच्य-वाचक सम्बन्ध का पर्यालोचनापूर्वक ('यह शंख है'-यों शब्द उल्लेखपूर्वक) बोध होना।. . २. चक्षुइंद्रिय लब्धि अक्षर - चक्षु इंद्रिय के निमित्त से उत्पन्न श्रुतज्ञान। जैसे-'आत्मा परिणामी नित्य है'-इस शब्द को आँख से पढ़कर- आत्मा परिणामी नित्य है' यह शब्द और 'परिणामी नित्य आत्मा' पदार्थगत वाच्य-वाचक सम्बन्ध का पर्यालोचनापूर्वक ('आत्मा नित्य है'-यों शब्द उल्लेखपूर्वक) नित्य आत्म तत्त्व का बोध होना अथवा 'ठूठ' को आँख से देखकर 'ह्ठ' शब्द और 'दूंठ' पदार्थगत वाच्य-वाचक संबंध का पर्यालोचनापूर्वक ('यह दूँठ है'-यों शब्द उल्लेखपूर्वक .. 'दूंठ' पदार्थ का) बोध होना। . ३. घ्राण इंद्रिय लब्धि अक्षर - घ्राण इंद्रिय के निमित्त से उत्पन्न श्रुतज्ञान। जैसे-कस्तूरी की गंध को नाक से सूंघकर 'कस्तूरी' शब्द और 'कस्तूरी' पदार्थगत वाच्य-वाचक सम्बन्ध का पर्यालोचनापूर्वक ('यह कस्तूरी है'-यों शब्दोल्लेख सहित कस्तूरी पदार्थ को) जानना। ४. जिह्वा इंद्रिय लब्धि अक्षर - जिह्वा इंद्रिय के निमित्त से उत्पन्न श्रुतज्ञान। जैसे-जीभ से ईक्षुरस चखकर-'ईक्षु रस' शब्द और 'ईक्षु रस' पदार्थगत परस्पर वाच्य-वाचक संबंध का पर्यालोचनापूर्वक ('यह 'ईख' का रस है'-यों शब्द उल्लेख सहित, ईक्षु रस का) ज्ञान होना। ५. स्पर्शन इंद्रिय लब्धि अक्षर - स्पर्शन इंद्रिय के निमित्त से उत्पन्न श्रुतज्ञान। जैसे-स्पर्शन से रस्सी का स्पर्श होने पर 'रस्सी' शब्द और 'रस्सी' पदार्थगत परस्पर वाच्य-वाचक सम्बन्ध का पर्यालोचनापर्वक ('यह रस्सी है। यों शब्द के उल्लेख पर्वक रस्सी का) ज्ञान होना। ६. अनिन्द्रिय लब्धि अक्षर - मन के निमित्त से उत्पन्न श्रुतज्ञान। जैसे-सूर्य का स्वप्न देखकर 'सूर्य' शब्द और 'सूर्य' पदार्थगत परस्पर वाच्य-वाचक सम्बन्ध का पर्यालोचनापूर्वक ('यह सूर्य है'-यों शब्द उल्लेखसहित सूर्य के स्वप्न का) ज्ञान होना। अथवा 'द्रव्य छह है -इस शास्त्र वचन का स्मरण कर 'द्रव्य छह है'-इस शब्द और छह द्रव्य पदार्थगत वाच्य-वाचक सम्बन्ध का पर्यालोचनापूर्वक ('द्रव्य छह है'-यों शब्द उल्लेखपूर्वक छह द्रव्य पदार्थ का) ज्ञान होना। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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