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________________ श्रुत ज्ञान २०५ ८. मति - श्रुतनिश्चित मतिज्ञान को 'मति' कहते हैं अथवा सूक्ष्म पर्यालोचना को 'मति' कहते हैं। ९. प्रज्ञा - अश्रुतनिश्रित मतिज्ञान को 'प्रज्ञा' कहते हैं। यह बुद्धि का पर्यायवाची शब्द है अथवा विशिष्ट क्षयोपशमजन्य यथार्थ पर्यालोचना को 'प्रज्ञा' कहते हैं। से तं आभिणिबोहियणाणपरोक्खं। से त्तं मइणाणं॥ ३६॥ अर्थ - यह आभिनिबोधिक ज्ञान परोक्ष है। यह मतिज्ञान है। अब जिज्ञासु श्रुतज्ञान के स्वरूप को जानने के लिए पूछता है। श्रुत ज्ञान से किं तं सुयणाणपरोक्खं? सुयणाणपरोक्खं चोद्दसविहं पण्णत्तं, तं जहा१. अक्खरसुयं २..अणक्खरसुयं ३. सण्णिसुयं ४. असण्णिसुयं ५. सम्मसुयं ६. मिच्छासुयं ७. साइयं ८. अणाइयं ९. सपज्जवसियं १०. अपज्जवसियं ११. गमियं १२. अगमियं १३. अंगपविटुं १४. अणंगपविट्ठ॥ ३७॥ प्रश्न - वह श्रुतज्ञान क्या है? उत्तर - श्रुतज्ञान के चौदह भेद हैं-१. अक्षरश्रुत २. अनक्षरश्रुत ३. संज्ञीश्रुत ४. असंज्ञीश्रुत ५. सम्यक्श्रुत ६. मिथ्याश्रुत ७. सादिश्रुत ८. अनादिश्रुत ९. सपर्यवसितश्रुत १०. अपर्यवसितश्रुत ११. गमिकश्रुत १२. अगमिकश्रुत १३. अंगप्रविष्टश्रुत १४. अंगबाह्यश्रुत।। विवेचन - शब्द या अर्थ को (रूपी-अरूपी पदार्थ को) मतिज्ञान से ग्रहण कर या स्मरण कर, उनमें जो परस्पर वाच्य-वाचक सम्बन्ध रहा हुआ है, उसकी पर्यालोचना पूर्वक, शब्द उच्चार अथवा उल्लेख सहित, शब्द व अर्थ को जानना-'श्रतज्ञान' है। सामान्यतया गुरु के शब्द सुनने से या ग्रंथ पढ़ने से अथवा उनमें उपयोग लगाने से जो ज्ञान होता है, उसे-' श्रुतज्ञान' कहते हैं। ... मति और श्रुत ज्ञान का अन्तर बताते समय 'श्रुतज्ञान' के स्वामी चारों गति के सम्यग्दृष्टि हैंयह पहले बता दिया है। अतएव अब सूत्रकार शिष्य की जिज्ञासा पूर्ति के लिए श्रुतज्ञान के कितने भेद हैं और श्रुतज्ञान कितने द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव को जानता है-ये शेष दो बातें बतायेंगे। सर्वप्रथम श्रुतज्ञान के कितने भेद हैं-यह बतलाने वाला दूसरा भेद द्वार बतलाते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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