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नन्दी सूत्र ******
मनकामना
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सुनता, परन्तु उसके शब्द पुद्गलों से प्रभावित होकर शब्द रूप में परिणत हुए पुद्गल ही सुनता है, क्योंकि शब्द पुद्गल समश्रेणी में ही गति करते हैं, विषम श्रेणी में गति नहीं करते, परन्तु वे विषम श्रेणी में रहे हुए शब्द, पुद्गलों को प्रभावित कर, शब्द रूप में परिणत करते जाते हैं।
जिस प्रकार शब्द पुद्गलों के लिए कहा, उसी प्रकार गंध पुद्गल, रस पुद्गल और स्पर्श पुद्गलों के विषय में भी समझना चाहिए। यथा-जो पुरुष गंध वाले, रस वाले और स्पर्श वाले पुद्गल की समश्रेणी में होता है, वह मिश्रित गंध, रस और स्पर्श पुद्गलों को जानता है और जो विषमश्रेणी में होता है, वह नियम से पराघात (वासित) गंध, रस और स्पर्श पुद्गलों को जानता है।
अब सूत्रकार मतिज्ञान के एकार्थक नाम बतलाते हैं। ईहा अपोह वीमंसा, मग्गणा य गवेसणा। सण्णा सई मई पण्णा, सव्वं आभिणिबोहियं॥ ८७॥
अर्थ - १. ईहा, २ अपोह (अवाय), ३. विमर्श, ४. मार्गणा, ५. गवेषणा, ६. संज्ञा, ७. स्मृति, ८. मति, ९. प्रज्ञा-ये सभी आभिनिबोधिक ज्ञान के ही अन्तर्गत हैं। अतएव सामान्यतया आभिनिबोधिक ज्ञान के ही नाम हैं।
विवेचन - विशेष अपेक्षा से, १. ईहा - यथार्थ पर्यालोचना को 'ईहा' कहते हैं। यह मतिज्ञान का दूसरा भेद है। ' २. अपोह - निश्चय को 'अपोह' कहते हैं। यह मतिज्ञान के तीसरे भेद का पर्यायवाची
३. विमर्श - सत्पदार्थ में पाये जाने वाले धर्म के स्पष्ट विचार को 'विमर्श' कहते हैं। यह ईहा का अन्तिम पाँचवाँ भेद है।
४. मार्गणा - सत्पदार्थ में पाये जाने वाले धर्मों की खोज को 'मार्गणा' कहते हैं। यह ईहा का दूसरा भेद है।
५. गवेषणा - सत्पदार्थ में न पाये जाने वाले धर्मों की विचारणा को 'गवेषणा' कहते हैं। यह ईहा का तीसरा भेद है। . ६. संज्ञा - पदार्थ को अव्यक्त रूप में जानने को 'संज्ञा' कहते हैं। यह मतिज्ञान के पहले भेद अवग्रह का पर्यायवाची है अथवा द्रव्य इंद्रिय आदि की सहायता के बिना होने वाले क्षुधा वेदन आदि को 'संज्ञा' कहते हैं।
___७. स्मृति - पहले जाने हुए पदार्थ के स्मरण को 'स्मृति' कहते हैं। यह धारणा के दूसरे भेद, धारणा का पयार्यवाची शब्द है।
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