________________
नन्दी सूत्र
ही होता रहता है । उसके पश्चात् के अगले एक समय में नैश्चयिक अर्थ अवग्रह होता है, उसके असंख्य समय पश्चात् प्रथम व्यावहारिक अर्थ अवग्रह होता है ।
यह प्रतिबोधक दृष्टांत से व्यंजन अवग्रह की प्ररूपणा है ।
अब सूत्रकार 'व्यंजन अवग्रह में असंख्य समय क्यों लगते हैं और अर्थ अवग्रह एक समय में क्यों होता है'- यह समझाने के लिये दूसरा दृष्टांत प्रस्तुत करते हैं
से किं तं मल्लगदिट्टंतेणं ? मल्लगदिट्टंतेणं से जहाणामए केइ पुरिसे आवागसीसाओ मल्लगं गहाय तत्थेगं उदगबिंदु पक्खेविज्जा से णट्टे अण्णेऽवि पक्खित्ते सेऽवि णट्टे, एवं पक्खिप्पमाणेसु पक्खिप्पमाणेसु होही से उदगबिंदू, जे णं तं मल्लगं रावेहिइत्ति, होही से उदगबिंदू, जे णं तंसि मल्लगंसि ठाहिति, होहि से उदगबिंदू जेणं तं मल्लगं भरिहिति, होही से उदगबिंदू, जे णं तं मल्लगं पवाहेहिति, एवामेव पक्खिप्पमाणेहिं पक्खिप्पमाणेहिं, अणंतेहिं पुग्गलेहिं जाहे तं वंजणं पूरियं होइ, ताहे " हु" ति करेइ, णो चेव णं जाणइ के वेस सद्दाइ ?
१९४
********
प्रश्न
उस मल्लक के दृष्टांत से व्यंजन अवग्रह की प्ररूपणा किस प्रकार है ?
उत्तर - कल्पना करो कि किसी नाम वाला कोई पुरुष है । वह कुंभकार के मिट्टी पकाने के स्थान- अवाड़े पर गया। वहाँ अवाड़े के ऊपर से उसने एक मल्लक- (शकोरा) उठाया। (अभी अभी पका हुआ होने के कारण वह अत्यन्त उष्ण और रूक्ष था । उसमें उसने जल का एक बिन्दु डाला पर वह शकोरे की उष्णता और रूक्षता से शोषित हो गया। दूसरा जल का बिन्दु डाला, तो वह भी शोषित हो गया। दूसरा जल का बिन्दु डालते रहने पर कई जल- बिन्दुओं से शकोरे की उष्णता और रूक्षता पूरी नष्ट हो जाने पर एक ऐसा जल-बिन्दु होगा, जो शकोरे में स्वयं शोषित नहीं होगा पर शकोरे को ही कुछ गीला कर देगा। उसके पश्चात् भी एक-एक जल-बिंदु डालते रहने पर कई जल-बिंदुओं से शकोरा पूरा गीला हो जाने के बाद एक ऐसा जल-बिंदु होगा-जो कोरे के तल पर अस्तित्व धारण किये हुए ठहरेगा । उसके पश्चात् एक-एक जल-बिंदु डालते रहने पर कई जल-बिंदुओं से शकोरा भरते- भरते एक ऐसा जल-बिंदु होगा, जो शकोरे को पूरा भर देगा और उसके बाद का मात्र एक ही जल-बिंदु ऐसा पर्याप्त होगा- जो उस शकोरे को प्रवाहित कर देगा।
-
इसी प्रकार जो पूर्वोक्त सोया हुआ पुरुष है, उसे जगाने वाला पुरुष, जब अनेक शब्द करता है और वे शब्द उस सुप्त पुरुष के कानों में प्रविष्ट होते होते, जब योग्य अनन्त शब्द पुद्गलों के द्वारा श्रोत्रइंद्रिय का व्यंजन अवग्रह पूरा हो जाता है, तब उससे अगले समय में उस सोये हुए पुरुष
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org