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मति ज्ञान - अवग्रह की दृष्टान्तों से प्ररूपणा
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उत्तर - जो जातिस्मरण ज्ञान है, वह धारणा के तीसरे भेद-स्मृति के अन्तर्गत है।
जातिस्मरण ज्ञान का अर्थ है-'पूर्व भव में जो शब्द आदि रूपी-अरूपी पदार्थों का ज्ञान किया था, उसका वर्तमान भव में स्मरण में आना।' ___ पूर्व भव स्मरण रूप जातिस्मरण ज्ञान, केवल पर्याप्त संज्ञी जीवों को ही होता है।
जाति स्मरण से पिछले संज्ञी भव ही स्मरण में आते हैं। यदि पिछले लगातार सैकड़ों भव संज्ञी के किये हों और क्षयोपशम तीव्र हो तो जाति स्मरण से वे सैकड़ों भव भी स्मरण में आ सकते हैं। वे भव ९०० तक हो सकते हैं' ऐसी एक धारणा है, अन्य धारणा से ९०० से ऊपर भी संभव है। अब सूत्रकार अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा, इन चारों का काल-स्थिति, बताते हैं।
अवग्रह आदि का काल उग्गहे इक्कसमइए, अंतोमुहुत्तिया ईहा, अंतोमुहुत्तिए अवाए, धारणा संखेग्जं वा कालं असंखेज्जं वा कालं॥३४॥
अर्थ - १. अवग्रह का काल 'एक समय' है। २. ईहा का काल 'अन्तर्मुहूर्त' है। ३. अवाय का काल भी 'अन्तर्मुहूर्त' है। ४. (वासनारूप) धारणा का काल एक भव आश्रित संख्यात वर्ष की आयुष्य वालों के लिए संख्यात काल और असंख्यात वर्ष की आयुष्य वालों के लिए असंख्यात काल है।
विशेष - व्यंजन अवग्रह का काल अन्तर्मुहूर्त है। व्यावहारिक अवग्रह का काल अन्तर्मुहूर्त है। अविच्युतिरूप धारणा का काल अन्तर्मुहूर्त है। स्मृति रूप धारणा का काल भी अन्तर्मुहूर्त है। . अब सूत्रकार इन चारों में सबसे पहले अवग्रह, उसके अनन्तर ईहा, उसके अन्तर अवाय और उसके अनन्तर धारणा का क्रम बताते हैं। इनमें सबसे पहले श्रोत्रइंद्रिय विषयक अवग्रह आदि का पूर्वापर क्रम बताते हैं। उसमें भी सर्वप्रथम श्रोत्रइंद्रिय व्यंजन अवग्रह को सदृष्टान्त स्पष्ट करने की प्रतिज्ञा करते हैं।
अवग्रह की दृष्टांतों से प्ररूपणा एवं अट्ठावीसइविहस्स आभिणिबोहियणाणस्स वंजणुग्गहस्स परूवणं करिस्सामि पडिबोहगदिटुंतेण, मल्लगदिटुंतेण य।
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