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नन्दी सूत्र
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ईहा के भेद से किं तं ईहा? ईहा छव्विहा पण्णत्ता, तं जहा - सोइंदियईहा, चक्खिंदियईहा, घाणिंदियईहा, जिब्भिंदियईहा, फासिंदियईहा, णोइंदियईहा।
प्रश्न - वह ईहा क्या है?
उत्तर - ईहा के छह भेद हैं-१. श्रोत्रेन्द्रिय ईहा, २. चक्षुरिंद्रिय ईहा, ३. घाणेन्द्रिय ईहा, ४. जिह्वेन्द्रिय ईहा, ५. स्पर्शनेन्द्रिय ईहा तथा ६. अनिन्द्रिय ईहा।
विवेचन - अवग्रह के द्वारा अव्यक्त रूप में जाने हुए पदार्थ की यथार्थ सम्यग् विचारणा करना-'ईहा' है। जैसे अंधकार में सर्प के सदृश रस्सी का स्पर्श होने पर-'यह रस्सी होनी चाहिए सर्प नहीं'-ऐसी यथार्थ सम्यग् विचारणा होना। ___ वहाँ यह सर्प होना चाहिए, रस्सी नहीं'-ऐसा विचार होना, अयथार्थ भ्रांत विचारणा है।
१. श्रोत्रइंद्रिय ईहा - भाव श्रोत्रेन्द्रिय द्वारा शब्द की विचारणा होना, जैसे शंख का शब्द. सुनाई देने पर 'यह शंख का शब्द होना चाहिए, धनुष्य का नहीं' ऐसी यथार्थ विचारणा होना।
२. चक्षुइंद्रिय ईहा - भाव चक्षुइंद्रिय के द्वारा रूप की विचारणा होना, जैसे ढूंठ के दिखाई ने पर 'दूंठ होना चाहिए, पुरुष नहीं'-ऐसी यथार्थ विचारणा होना। ,
३. घ्राणइंद्रिय ईहा - भाव घ्राणइंद्रिय के दावारा गन्ध की विचारणा होना, जैसे 'कस्तूरी की न्ध आने पर यह कस्तूरी की ही गन्ध है, केशर की नहीं'-ऐसी यथार्थ विचारणा होना।
४. जिह्वाइंद्रिय ईहा - भाव जिह्वाइंद्रिय के द्वारा रस की विचारणा होना. जैसे ईख का रस चखने पर-'यह ईख का ही रस होना चाहिए, गुड़ का पानी नहीं'-ऐसी यथार्थ विचारणा होना।
५. स्पर्शनइंद्रिय ईहा - भाव स्पर्शनइन्द्रिय के द्वारा स्पर्श की विचारणा होना, जैसे कोमल रस्सी का स्पर्श होने पर 'यह रस्सी का ही स्पर्श होना चाहिए, सर्प का नहीं'-ऐसा यथार्थ विचार होना।
६. अनिन्द्रिय ईहा - भाव मन के द्वारा रूपी अरूपी पदार्थ की विचारणा होना जैसे-उगते हुए सूर्य का स्वप्न देखने पर 'यह उदय होते हुए सूर्य का स्वप्न होना चाहिए, अस्त होते हुए सूर्य का नहीं'-ऐसी यथार्थ विचारणा होना।
प्रश्न - ईहा मन से की जाती है या श्रोत्र आदि भावइन्द्रिय से?
उत्तर - जो मन रहित असंज्ञी जीव हैं, वे ही मात्र उस उस श्रोत्र आदि भाव इंद्रियों के द्वारा शब्द आदि की ईहा आदि करते हैं, परन्तु जो मन सहित संज्ञी जीव हैं, वे तो उस उस श्रोत्र आदि भावइंद्रियों के साथ-साथ भावमन से भी शब्द आदि की ईहा आदि करते हैं।
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