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________________ ********************************* मति ज्ञान प्रश्न – क्यों ? - भी तीसरी ईहा की अपेक्षा उपचार करके अवग्रह माना जाता है । इस प्रकार जिस अवाय के पश्चात् नई ईहा जगे, उसे उपचार से व्यवहार में अवग्रह मानते हैं। जिस अवाय के पश्चात् नई ईहा नहीं जगती, उसे अवाय ही मानते हैं। - - जैसे किसी शब्द पुद्गल का श्रवण होने पर ईहा और अवाय होकर जब यह निर्णय हो जाये कि 'मैंने जिसे जाना है, वह शब्द ही है, रूपादि नहीं।' यदि उसके पश्चात् यह जिज्ञासा उत्पन्न हो कि 'वह शब्द किसका है ? शंख का या धनुष्य का ? तो इस जिज्ञासा की अपेक्षा पूर्व का वह निर्णय उपचार से व्यवहार में अवग्रह माना जाता है। यदि इसका भी निर्णय हो जाये कि 'यह शंख का ही शब्द है धनुष्य का नहीं' और फिर यह जिज्ञासा उत्पन्न हो कि 'यह शंख का शब्द, नवयुवक ने बजाया है या वृद्ध ने ?' तो इस जिज्ञासा की अपेक्षा पूर्व का दूसरा निर्णय भी उपचार से व्यवहार में अवग्रह माना जाता है, अस्तु ! इन पाँच नामों में से पहले के दो नाम व्यञ्जन अवग्रह के हैं, तीसरा नाम अर्थ अवग्रह का और पिछले दो नाम व्यावहारिक अर्थ अवग्रह के हैं । वे इस प्रकार हैं १. अवग्रहणता - व्यञ्जन अवग्रह के पहले समय में आये हुए शब्दादि पुद्गलों का उपकरण द्रव्यं इंद्रिय के द्वारा ग्रहण करना, ' अवग्रहणता' है । २. उपधारणता व्यञ्जन अवग्रह के दूसरे तीसरे आदि समयों में आते हुए नये-नये शब्दादि पुद्गलों का, उपकरण द्रव्य इंद्रिय द्वारा ग्रहण करना 'उपधारणता ' है । ३. श्रवणता अर्थ अवग्रह में भाव इंद्रिय के द्वारा पदार्थ को अव्यक्त रूप में जानना 'श्रवणता' है । ४. अवलम्बनता - नई दूसरी ईहा के लिए प्रथम अवाय का अवलम्बन रूप होना 'अवलम्बनता ' है । ५. मेधा दूसरे तीसरे आदि अवायों में पहले अवाय से अधिक बुद्धि का होना 'मेधा' है । - Jain Education International अवग्रह के भेद १८५ सूचना - आगे अर्थ अवग्रह के लिए जो भी दृष्टान्त दिये जायेंगे, वे नैश्चयिक अर्थ अवग्रह के न होकर व्यावहारिक अर्थ अवग्रह के होंगे। - उत्तर - इसका कारण यह है कि दृष्टान्त वही दिया जाता है - जो कि अनुभव गम्य हो और शब्द द्वारा प्रकट किया जा सकता हो। नैश्चयिक अर्थ अवग्रह एक समय का होने से उसका ज्ञान इतना अव्यक्त कि 'छद्मस्थ उसका अनुभव नहीं कर सकता और केवली उसे जानते हुए भी प्रकट नहीं कर सकते।' व्यावहारिक अर्थ अवग्रह ही ऐसा है, जो छद्मस्थ के लिए अनुभव गम्य है और वाणी द्वारा प्रकट किया जा सकता है। इसीलिए उसका नाम व्यावहारिक रखा गया है। हा आदि के जो दृष्टान्त होंगे, वे भी व्यावहारिक अर्थ अवग्रह के पीछे होने वाले ही होंगे। यह अवग्रह है। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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