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________________ १६६ नन्दी सूत्र ********** ************** *HHHHH सकडाल - "राजन्! वह लोक में प्रचलित पुराने श्लोक ही सुनाता है।" राजा - "तुम ऐसा कैसे कह सकते हो?" मंत्री - "मैं ठीक कहता हूँ। जो श्लोक वररुचि सुनाता है, वे मेरी लड़कियों को भी याद हैं। यदि आपको विश्वास न हो, तो कल ही मैं अपनी लड़कियों से वररुचि द्वारा कहे हुए श्लोकों को ज्यों के त्यों कहलवा सकता हूँ।" . राजा ने मंत्री की बात मान ली। दूसरे दिन अपनी लड़कियों को लेकर मंत्री राजसभा में आया और पर्दे के पीछे उन्हें बिठा दिया। इसके बाद वररुचि राजसभा में आया और उसने अपने बनाये हुए एक सौ आठ. श्लोक सुनाये। जब वह सुना चुका, तो सकडाल की बड़ी लड़की यक्षा उठ कर सामने आई और उसने सारे श्लोक ज्यों के त्यों सुना दिये, क्योंकि वह उन श्लोकों को एक बार सुन चुकी थी। इसके बाद क्रमश: दूसरी, तीसरी, चौथी, पाँचवीं, छठी और सातवीं लड़की ने भी वे श्लोक ज्यों के त्यों सुना दिये। यह देख कर राजा, वररुचि पर बहुत क्रुद्ध हुआ। उसने अपमानपूर्वक वररुचि को राजसभा से निकलवा दिया। ____ वररुचि बहुत खिन्न हुआ। उसने सकडाल को अपमानित करने का निश्चय किया। लकड़ी का एक लम्बा पटिया लेकर वह गंगा नदी के किनारे आया। उसने पटिने का एक हिस्सा जल में रख दिया और दूसरा जल के बाहर रहने दिया। एक थैली में उसने एक सौ आठ मोहरें रखीं और रात्रि में गंगा के किनारे जाकर उस पटिये के जल में डबे हए हिस्से पर उसने उस थैली को दिया। प्रातःकाल वह पटिये के बाहर के हिस्से पर बैठकर गंगा की स्तुति करने लगा। जब स्तुति समाप्त हुई, तो उसने पटिये को दबाया, जिससे वह मोहरों की थैली ऊपर आ गई। थैली दिखाते हुए उसने लोगों से कहा - 'सकडाल के कहने से राजा मुझे पुरस्कार नहीं देता, तो क्या हुआ? गंगा प्रसन्न हो कर मुझे पुरस्कार देती है। इसके बाद वह थैली लेकर घर चला आया। अब वह प्रतिदिन इसी तरह करने लगा। वररुचि के कार्य को देख कर लोग आश्चर्य करने लगे। जब यह बात सकडाल को मालूम हुई, तो उसने खोज करके उसके रहस्य को मालूम कर लिया। लोग वररुचि के कार्य की बहुत प्रशंसा करने लगे। धीरे-धीरे यह बात राजा के पास भी पहुँची। राजा ने खकडाल से कहा। सकडाल ने कहा - "राजन्! यह सब उसका ढोंग है। वह ढोंग करके लोगों को आश्चर्य में डालता है। आपने लोगों से सुना है। सुनी हुई बात पर सहसा विश्वास नहीं करना चाहिये। उसे स्वयं देख कर फिर विश्वास करना चाहिये।" राजा ने कहा - "ठीक है। कल प्रातःकाल गंगा के किनारे चल कर हमें सारी घटना अपनी आँखों से देखनी चाहिये। नगर में यह घोषित कर दो कि कल राजा भी देखने आयेंगे।" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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