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णमो णाणस्स
सिरि नंदी सुत्तं
श्री नन्दी सूत्र
(मूल पाठ, भावार्थ एवं विवेचन सहित)
- नन्दी सूत्र - आनन्द, हर्ष और प्रमोद को 'नन्दी' कहते हैं। यह पाँच ज्ञान का निरूपण करने वाला सूत्र, ज्ञान रूप आनंद एवं हर्ष प्रमोद का देने वाला है, अतः इसे 'नन्दी सूत्र' कहते हैं। किसी भी सूत्रको आरम्भ करने से पूर्व मंगल के लिए भी इस नन्दी सूत्र का स्वाध्याय किया जाता है।
इस सूत्र के प्रारम्भ में आचार्यश्री 'देववाचकजी' ने जो विविध स्तुति की है और आवलिका प्रतिपादित की है, वह इस प्रकार है। आचार्य श्री सर्व प्रथम अनादि से अब तक के सभी तीर्थंकरों की सामान्यतः स्तुति करते हैं -
. तीर्थंकर स्तुति जयइ जग-जीव-जोणी-वियाणओ, जग-गुरू जगाणंदो। जग-णाहो जग-बंध, जयइ जगप्पियामहो भयवं॥१॥"
१. हे भगवन्! आप 'जग-जीव और योनि के विज्ञाता हैं' = १. धर्म २. अधर्म ३. आकाश ४. जीव. ५. पुद्गल और ६. काल रूप छह द्रव्यात्मक सकल जगत् को, सिद्ध और संसारी रूप सकल. जीवों को और जीवों की उत्पत्ति स्थान रूपी सभी योनियों को विशेष रूप से जानने वाले केवलज्ञानी हैं। - २. आप 'जगत् गुरु' हैं - विश्व को छहों द्रव्यों का यथार्थ 'प्रतिपादन कराने-ज्ञान देने वाले हैं। - ३. आप 'जगदानंद' हैं - 'पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय भव्य जीवों को' अपने उत्तमदर्शन और
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