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नन्दी सूत्र
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७. प्राण रक्षा
(धनदत्त) राजगृह नगर में धनदत्त नाम का एक सार्थवाह रहता था। उसकी स्त्री का नाम भद्रा था। उसके पाँच पुत्र और सुंसुमा नामक एक पुत्री थी। 'दिलात' नाम का एक दासपुत्र उस लड़की को खिलाया करता था, किन्तु साथ खेलने वाले दूसरे बच्चों को वह अनेक प्रकार से दुःख देता था। वे अपने माता-पिता से इसकी शिकायत करते थे। इन बातों को जान कर धनदत्त सार्थवाह ने उसे अपने घर से निकाल दिया। स्वच्छन्द बन कर चिलात, सातों व्यसनों में आसक्त हो गया। नगरजनों से तिरस्कृत होकर वह सिंहगुफा नाम की चोरपल्ली में, चोर-सेनापति विजय के पास चला गया। उसके पास रह कर उसने चोर की सभी विद्याएँ सीख ली और चोरी करने में अत्यन्त निपुण हो गया। कुछ समय के बाद विजय चोर की मृत्यु हो गई। उसके स्थान पर चिलात को चोरों का सेनापति नियुक्त किया गया। ____एक समय चिलात चोर-सेनापति ने अपने पाँच सौ चोरों से कहा-"चलो, राजगृह नगर में, चल कर धन्ना सार्थवाह के घर को लूटें। लूट में जो धन आवे, वह सब तुम रख लेना और सेठ की पुत्री सुंसुमा को मैं रखूगा।" ऐसा विचार कर उन्होंने धन्ना सार्थवाह के घर डाका डाला। बहुत-सा धन और सुंसुमा कुमारी को लेकर वे चोर भाग गए। अपने पाँच पुत्रों को तथा कोतवाल और सुभटों को साथ लेकर धन्ना सार्थवाह ने चोरों का पीछा किया। चोरों से धन लेकर राज सेवक तो वापिस लौट गये, किन्तु धन्ना सार्थवाह और उसके पाँच पुत्रों ने सुंसुमा को लेने के लिए चिलात का पीछा किया। उन को पीछे आते देखकर चिलात थक गया और सुंसुमा लेकर भागने में असमर्थ हो गया। इसलिए तलवार से सुंसुमा का सिर काट कर धड़ को वहीं छोड़ दिया और सिर हाथ में लेकर भाग गया। जंगल में दौड़ते-दौड़ते उसे बड़े जोर से प्यास लगी। पानी नहीं मिलने से उसकी मृत्यु हो गई।
धन्ना सार्थवाह और उसके पाँचों पुत्र चिलात चोर के पीछे दौड़ते-दौड़ते थक गये और भूख प्यास से व्याकुल होकर वापिस लौटे। रास्ते में पड़े हुए सुंसुमा के मृतशरीर को देखकर वे अन्यन्त शोक करने लगे। वे सब लोग भूख और प्यास से घबराने लगे। तब धन्ना सार्थवाह ने अपने पाँचों पुत्रों से कहा-"तुम मुझे मार डालो और मेरे मांस से भूख और खून से प्यास को शांत करके राजगृह नगर में पहुँच जाओ।" यह बात उसके पुत्रों ने स्वीकार नहीं की। वे कहने लगे-"आप हमारे पिता हैं। हम आपको कैसे मार सकते हैं?" तब कोई उपाय न देखकर पिता ने कहा"सुंसुमा तो मर चुकी है। अपने को इसके मांस और रुधिर से भूख और प्यास बुझा कर राजगृह
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