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मति ज्ञान - स्वप्न से प्रतिबोध
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३. अति आहार का परिणाम
(कुमार) एक राजकुमार था। उसका विवाह अनेक रूपवती राजकन्याओं के साथ हुआ। उनके साथ रति क्रीड़ा आदि करते हुए उसका समय सुखपूर्वक व्यतीत हो रहा था। राजकुमार को लड्डु खाने का बड़ा शौक था। एक समय उसने सुगन्धित पदार्थों से युक्त लड्डु अतिपरिमाण में खा लिए। अधिक खा लेने से उसे अजीर्ण हो गया। मुँह से दुर्गन्ध निकलने लगी। इससे राजकुमार को बड़ी घृणा उत्पन्न हुई। वह सोचने लगा-"यह शरीर कैसा अशुचिमय है। इसका संयोग पाकर सुन्दर और मनोहर पदार्थ भी अशुचिपूर्ण बन जाते हैं। यह शरीर अशुचि पदार्थों से बना है और स्वयं अशुचि का भण्डार है। लोग ऐसे घृणित शरीर के लिए अनेक पाप करते हैं। वास्तव में यह धिक्कारने योग्य है।"
इस प्रकार अशुचि-भावना भाने से तथा परिणामों की धारा के चढ़ने से उस राजकुमार को उसी समय केवलज्ञान उत्पन्न हो गया। कई वर्षों तक केवली-पर्याय का पालन करके वे मोक्ष में पधारे। राजकुमार की यह 'पारिणामिकी बुद्धि' थी।
४. स्वप्न से प्रतिबोध
(देवी) प्राचीन समय में पुष्पभद्र नाम का एक नगर था। वहाँ पुष्पकेतु राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम पुष्पवती था। उसके दो सन्तानें थीं-एक पुत्र और एक पुत्री। पुत्र का नाम 'पुष्पचूल' था और पत्री का नाम 'पुष्पचला' था। भाई-बहिन में परस्पर बहत स्नेह था। जब वे यौवनावस्था को प्राप्त हुए तब पिता ने उनके राग को देखकर परस्पर लग्न कर दिया। इससे खिन्न माता कालधर्म को प्राप्त हो गई। यहाँ की आयु पूर्ण करके वह देवलोक में गई और पुष्पवती नाम की देवी हुई। ... एक समय पुष्पवती देवी ने विचार किया कि मेरी पुत्री पुष्पचूला आत्म-कल्याण के मार्ग को भूल कर लोक विरुद्ध संसार में ही फँसी न रह जाय। इसलिए उसे प्रतिबोध देने के लिए मुझे कुछ उपाय करना चाहिए। ऐसा सोचकर देवी ने पुष्पचूला को स्वप्न में धर्म से स्वर्ग और पाप से नरक के दृश्य दिखाये। उन्हें देख कर पुष्पचूला को प्रतिबोध हो गया। संसार के प्रपंचों को छोड़कर उसने दीक्षा ले ली। तपस्या और धर्मध्यान के साथ-साथ वह दूसरी साध्वियों की वैयावच्च करने
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