SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 168
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मति ज्ञान - अभयकुमार की बुद्धि १५१ ********************************************** ** * 400 2 0241tert s *** ** **** वापिस उज्जयिनी लौट आये। जब वे राजा से मिलने के लिए गये, तो पहले तो उन्हें धोखेबाज समझ कर राजा ने मिलने से ही इन्कार कर दिया किन्तु जब उन्होंने बहुत प्रार्थना करवाई, तब राजा ने उन्हें मिलने की आज्ञा दी। राजा से मिलने पर उन्होंने वापिस लौटने का कारण पूछा। राजा ने सारी बात कही। तब उन्होंने कहा - "देव! अभयकुमार बहुत बुद्धिमान् है। उसने आपको धोखा देकर अपना बचाव कर लिया है।" यह सुनकर वह अभयकुमार पर बहुत क्रुद्ध हुआ। उसने आज्ञा दी कि "जो अभयकुमार को पकड़ कर मेरे पास लायेगा, उसको बहुत बड़ा इनाम दिया जायेगा।" एक वेश्या ने राजा की उपरोक्त आज्ञा स्वीकार की। वह कपट-श्राविका बनकर राजगृह में आई। कुछ समय पश्चात् उसने अभयकुमार को अपने यहाँ भोजन करने के लिए निमंत्रण दिया। उसे श्राविका समझ कर अभयकुमार ने उसका निमंत्रण स्वीकार कर लिया और एक दिन भोजन करने के लिए उसके घर चला गया। वेश्या ने भोजन में कुछ मादक पदार्थ मिला दिये, इसलिए भोजन करते ही अभयकमार मच्छित हो गए। उसी समय वेश्या उसे रथ में चढा कर उज्जयिनी ले आई और राजा की सेवा में उपस्थित कर दिया। राजा चण्डप्रद्योत ने कहा - "अभयकुमार! तुमने मुझे धोखा दिया। परन्तु मैंने भी कैसी चतुराई से पकड़वा कर तुम्हें यहाँ मंगवा लिया। बोल अब क्या कहता है?" ... अभयकुमार ने कहा - 'मासाजी! अभिमान मत करिये। इस उज्जयिनी के बाजार में से ही आपके सिर पर जूता मारता हुआ, मैं आपको राजगृह ले जाऊँ, तब मेरा नाम अभयकुमार समझना' चण्डप्रद्योत ने अभयकुमार की इस बात को हँसी में टाल दिया। कुछ समय पश्चात् अभयकुमार ने एक ऐसे मनुष्य की खोज की-जिसकी आवाज राजा चण्डप्रद्योत जैसी हो। जब उसे ऐसा मनुष्य मिल गया, तो उसे अपने पास रख कर अच्छी तरह समझा दिया। एक दिन उसे रथ में बिठा कर उसके सिर पर जूते मारता हुआ अभयकुमार उज्जयिनी के बाजार में होकर निकला। वह पुरुष चिल्लाने लगा-"अभयकुमार मुझे जूतों से मार रहा है मुझे छुड़ाओ, मुझे छुड़ाओ।" राजा चण्डप्रद्योत की सरीखी आवाज सुन कर लोग दौड़ कर उसे छुड़ाने के लिए आये। लोगों के आते ही वह पुरुष और अभयकुमार खिलखिला कर हँसने लग गये। लोगों ने समझा - 'अभयकुमार बालक है, बालक्रीड़ा करता है। अतः वे सब वापिस अपने-अपने स्थान चले गये। अभयकुमार लगातार पाँच सात दिन इसी तरह करता रहा। अब कोई भी मनुष्य उसे छुड़ाने नहीं आता था। सभी लोगों को पूर्ण विश्वास हो गया था कि यह तो अभयकुमार की बालक्रीड़ा है। एक दिन उचित अवसर देखकर अभयकुमार ने राजा चण्डप्रद्योत को बाँध कर अपने रथ में डाल लिया और उज्जयिनी के बाजार में उसके सिर पर जूते मारता हुआ निकला। चण्डप्रद्योत चिल्लाने लगा - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy