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मति ज्ञान - पारिणामिकी बुद्धि के २१ दृष्टान्त
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पारिणामिकी बुद्धि अब सूत्रकार पारिणामिकी बुद्धि के लक्षण कहते हैं - . अणुमाणहेउ-दिटुंत, साहिया वयविवागपरिणामा। हियणिस्सेयसफलवई, बुद्धी परिणामिया णाम॥ ७८॥
अर्थ - जो बुद्धि, अवस्था के परिपक्व होने से पुष्ट हुई है, जिसमें अनुमानों, हेतुओं और दृष्टान्तों का अनुभव है और इनके बल पर अपना हित और कल्याण साध सकती है, उसे 'पारिणामिकी बुद्धि' कहते हैं।
विवेचन - १. परिणामों से जो बुद्धि उत्पन्न होती है, उसे 'पारिणामिकी बुद्धि' कहते हैं। २. स्वतः के अनुमान, अन्य लोगों से सुने हुए तर्क और घटित हुए और घटित हो रहे दृष्टान्तों के ज्ञान से पारिणामिकी बुद्धि सधती है। ३. ज्यों-ज्यों वय में परिपाक आता है, त्यों-त्यों पारिणामिकी बुद्धि में परिपाक आता है। ४. पारिणामिकी बुद्धि से किये गये कार्य से इहलोक तथा परलोक में हित होता है और अन्त में निःश्रेयस (मोक्ष) की उपलब्धि होती है। -: पारिणामिकी बुद्धि के २१ दृष्टान्त
अब सूत्रकार पारिणामिकी बुद्धि के २१ दृष्टान्तों के नाम उपस्थित करते हैं - अभए सिट्ठि कुमारे, देवी उदिओदए हवइ राया। साहू.य नंदिसेणे, धणदत्ते सावग अमच्चे॥७९॥ खमए अमच्चपुत्ते, चाणक्के चेव थूलभद्दे य। नासिक्कसुंदरिनंदे, वइरे, परिणामिया बुद्धी॥८०॥ चलणाहण आमंडे, मणी य सप्पे य खग्गि थूभिंदे। परिणामियबुद्धीए, एवमाई उदाहरणा॥ ८१॥ से त्तं अस्सुयणिस्सियं।
अर्थ - १. अभयकुमार २. सेठ ३. कुमार ४. देवी ५. उदितोदय राजा ६. साधु और नन्दिषेण ७. धनदत्त ८. श्रावक ९. अमात्य-मंत्री, १०. क्षपक ११. अमात्यपुत्र (मंत्री पुत्र) १२. चाणक्य १३. स्थूलभद्र १४. नासिकराज सुन्दरीनन्द १५. वज्र १६. चलन आहत १७. आँवला १८. मणि १९. साँप २०. खगी-गेंडा और २१. स्तुपेन्द्र इत्यादि पारिणामिकी बुद्धि के उदाहरण हैं।
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