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मति ज्ञान - रोहक का माता से बदला
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लगा-"बालक के कहने मात्र से, निर्णय किये बिना ही मैंने अपनी स्त्री के साथ अप्रीति का व्यवहार किया। यह अच्छा नहीं किया।" इस प्रकार पश्चात्ताप करके वह अपनी स्त्री के साथ पहले की तरह प्रेम का व्यवहार करने लगा। ___ अब रोहक की सौतेली माता, रोहक के साथ अच्छा व्यवहार करने लगी, किन्तु रोहक अब सदा शंकित रहने लगा। उसने सोचा-'मेरे दुर्व्यवहार से अप्रसन्न हुई माता, कदाचित् विष आदि देकर मुझे मार न दे, इसलिए अब मुझे अकेले भोजन नहीं करना चाहिए।' ऐसा सोच कर उस दिन से रोहक सदा अपने पिता के साथ ही भोजन करने लगा और सदा पिता के साथ ही रहने लगा।
एक समय भरत, खरीदी आदि किसी कार्यवश उज्जयिनी गया। रोहक भी उसके साथ गया। नगरी स्वर्ग के समान शोभित थी। उसे देखकर रोहक बहत प्रसन्न हआ। उसने अपने मन में नगरी का पूरा चित्र खींच लिया। वहाँ का कार्य करके भरत वापस अपने गाँव की ओर रवाना हुआ। जब वह शहर से निकल कर क्षिप्रा नदी के किनारे पहुँचा, तब उसे एक चीज याद आई. जिसे वह शहर में किसी दुकान में रखकर फिर भूल आया था। भरत को वहीं बिठाकर वह वापस शहर में गया। इधर रोहक ने क्षिप्रा नदी के किनारे की बालू रेत पर राजमहल तथा कोट किले सहित उज्जयिनी नगरी का हूबहू चित्र खींच दिया। संयोगवश घोड़े पर सवार हुआ राजा उधर आ निकला। अपनी चित्रित की हुई नगरी की ओर राजा को आते हुए देख कर रोहक बोला-"ऐ घुड़सवार! इस रास्ते से मत आओ।" घुड़सवार बोला-"क्यों? क्या है?" रोहक बोला-"देखते नहीं? नगरी में यह राजभवन है। इसमें कोई भी प्रवेश नहीं कर सकता।" बालक की बात सुनकर कौतुकवश राजा घोड़े से नीचे उतरा। उसके खिंचे हुए नगरी तथा राजभवन के हूबहू चित्र को देख कर राजा बड़ा विस्मित हुआ। उसने बालक से पूछा,-"तुमने पहले कभी इस नगरी को देखा है?" बालक ने कहा-"नही। आज ही मैं गाँव से आया हूँ और आज ही पहली बार नगरी को देखा है।" बालक की अपूर्व धारणा शक्ति को देखकर, राजा चकित हो गया। वह मन ही मन
द्धि की प्रशंसा करने लगा। राजा ने उससे पछा-"वत्स! तम्हारा क्या नाम है और तम कहाँ रहते हो?" बालक ने कहा-"मेरा नाम रोहक है और मैं इस पास वाले नटों के गाँव में रहता हूँ।" इतने में रोहक का पिता शहर में भूली हुई वस्तु लेकर वापस वहाँ आ पहुँचा। रोहक अपने पिता के साथ रवाना हो गया।
- राजा भी अपने महल में चला आया और सोचने लगा कि मेरे ४९९ मन्त्री हैं। यदि कोई अतिशय बुद्धिशाली प्रधानमन्त्री बना दिया जाय, तो मेरा राज्य सुखपूर्वक चलेगा। ऐसा विचार कर राजा ने रोहक की बुद्धि की परीक्षा करने का निश्चय किया। रोहक की औत्पत्तिकी बुद्धि की यह पहली कथा है।
बाल
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