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________________ नन्दी सूत्र हो गया । पुत्र की उम्र छोटी देख कर उसका पालन-पोषण करने के लिए और अपनी सेवा करने के लिए भरत ने दूसरा विवाह कर लिया। रोहक उस सौतेली माँ के आश्रय में रहने लगा, किन्तु वह सौतेली माँ रोहक के साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार नहीं करती थी । उसके कठोर व्यवहार से बालक रोहक बहुत दुःखी हो गया। एक दिन रोहक ने अपनी सौतेली माँ से कहा कि "माँ ! मेरे तू साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार नहीं करती है, यह अच्छा नहीं है।" माँ ने उसकी बात पर कुछ ध्यान नहीं दिया। उसने उपेक्षापूर्वक कहा " अरे रोहक ! यदि मैं तेरे साथ अच्छा व्यवहार नहीं करती हूँ, तो तू मेरा क्या कर लेगा!" रोहक ने कहा- "माँ! मैं ऐसा कार्य करूँगा कि जिससे तुझे मेरे पैरों पर गिरना पड़ेगा।" माँ ने कहा- "माँ ने कहा- " अरे रोहक ! तू अभी बच्चा है। छोटे मुँह बड़ी बात बनाता है? अच्छा! मैं देखती हूँ कि तू मेरा क्या कर लेगा ?" यह कह कर वह सदा की भाँति अपने कार्य में लग गई और अधिक निष्ठुर व्यवहार करने लगी । १०४ Jain Education International - - - रोहक अपनी बात को पूरी करने का अवसर देखने लगा। किसी एक उजियारी रात के समय वह अपने पिता के साथ बाहर सोया हुआ था। उसकी माँ मकान में सोई हुई थी। आधी रात के समय रोहक एकदम चिल्लाने लगा " पिताजी ! उठिये । घर में से निकल कर कोई पुरुष भागा जा रहा है।" रोहक के चिल्लाने से भरत एकदम उठा और उससे पूछने लगा- "किधर ? किधर ?" बालक ने कहा 'पिताजी ! वह अभी इधर से भाग गया है।" बालक की उपरोक्त बात सुनकर भरत को अपनी स्त्री के प्रति शंका हो गई। वह सोचने लगा " मेरी स्त्री का आचरण ठीक नहीं है। यहाँ कोई जार पुरुष आता है।" इस प्रकार अपनी स्त्री को दुराचारिणी समझ कर भरत ने उसके साथ सारे सम्बन्ध तोड़ दिये । यहाँ तक कि उसने उसके साथ बोलना भी बन्द कर दिया । इस प्रकार पति को निष्कारण रूठा देखकर वह समझ गई कि यह सब करतूत बालक रोहक की ही है। इसको प्रसन्न किये बिना मेरा काम नहीं चलेगा। ऐसा सोच कर उसने प्रेमपूर्वक अनुनय विनय करके पैरों पड़ कर और भविष्य में अच्छा व्यवहार करने का विश्वास दिलाकर बालक रोहक को प्रसन्न किया। रोहक ने कहा- "माँ ! अब मैं ऐसा प्रयत्न करूँगा कि तुम्हारे प्रति पिताजी की अप्रसन्नता शीघ्र ही दूर हो जायेगी।" एक दिन सदा की भांति रोहक अपने पिता के साथ बाहर सोया हुआ था कि आधी रात के समय एकदम चिल्लाने लगा - " पिताजी पिताजी ! उठिये कोई पुरुष घर में से निकल कर बाहर जा रहा है।" बालक की बात सुन कर भरत तत्काल उठा और हाथ में तलवार लेकर कहने लगा कि'बतला, वह पुरुष कहाँ है ? उस जार पुरुष का सिर मैं अभी तलवार से काट डालता हूँ।' बालक ने चांदनी में अपनी छाया दिखाते हुए कहा - " पिताजी! वह पुरुष यह है ।" भरत ने पूछा - " क्या उस दिन भी ऐसा ही पुरुष था ?" बालक ने कहा- "हाँ ।" बालक की बात सुनकर भरत सोचने - - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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