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नन्दी सूत्र
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Passenna
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द्रव्यों को और उनके प्रत्येक के सभी प्रदेशों को केवलज्ञान से प्रत्यक्ष जानते हैं और केवलदर्शन से प्रत्यक्ष देखते हैं।
खित्तओ णं केवलणाणी सव्वं खित्तं जाणइ पासइ।
अर्थ - क्षेत्र से केवलज्ञानी, सभी क्षेत्र को-सर्व लोकाकाश और सर्व अलोकाकाश को जानते देखते हैं।
विवेचन - १. 'क्षेत्र' का अर्थ है - 'आकाश द्रव्य।' वह छह द्रव्यों में सम्मिलित है। अतएव केवलज्ञानी सभी द्रव्यों को जानते हैं। इसमें 'सब क्षेत्र' अर्थात् लोकाकाश और अलोकाकाश भी जानते हैं - यह भाव भी आ जाता है। परन्तु लोक में द्रव्य से क्षेत्र को पृथक् कहने का व्यवहार है, अतएव शास्त्रकार ने केवलज्ञानी सर्व क्षेत्र को जानते हैं' - यह पृथक् से कहा है।
२. अथवा - छहों द्रव्यों में जो द्रव्य, जितने क्षेत्र प्रमाण है, उसे केवलज्ञानी, अपने केवलज्ञान से उतने क्षेत्र प्रमाण जानते हैं और केवलदर्शन से देखते हैं।
३. खास करके केवलज्ञानी केवलज्ञान से सर्व क्षेत्रवर्ती सर्वद्रव्यपर्याय को जानते देखते हैं। यह यहाँ कहने का प्रयोजन है।
कालओ णं केवलणाणी सव्वं कालं जाणइ पासइ।
अर्थ - काल से केवलज्ञानी, सभी काल (सर्व भूत, सर्व वर्तमान और सर्व भविष्य) को जानते देखते हैं।
विवेचन - १. काल भी छहों द्रव्यों में सम्मिलित है, पर व्यवहार में जैसे - द्रव्य से क्षेत्र को पृथक् कहने का व्यवहार है, वैसे ही, द्रव्य से काल को भी पृथक् कहने का व्यवहार है। अतएव सूत्रकार ने केवलज्ञानी केवलज्ञान से सब काल को जानते हैं। यह पृथक् से कहा है।
२. अथवा जो द्रव्य, जितने काल परिमाण है, केवलज्ञानी केवलज्ञान से उस द्रव्य को उतने काल परिमाण जानते हैं और केवल दर्शन से देखते हैं।
३. खास करके केवलज्ञानी केवलज्ञान से सर्व कालवर्ती सर्व द्रव्य पर्याय को जानते देखते हैं, यह यहाँ कहने का प्रयोजन है।
भावओ णं केवलणाणी सव्वे भावे जाणइ पासइ। अर्थ - भाव से केवलज्ञानी, सभी भावों (औदयिक आदि छहों भावों) को जानते हैं।
विवेचन - १. किस द्रव्य के २. किस प्रदेश में ३. किस क्षेत्र में ४. किस काल में ५. किस गुण की ६. क्या पर्याय हुई, क्या पर्याय हो रही है और क्या पर्याय होगी?-यह सब केवलज्ञानी, केवलज्ञान से जानते हैं और केवल दर्शन से देखते हैं। इति तीसरा विषय द्वार समाप्त।
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