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________________ नन्दी सूत्र ******************* ******************************** ************************* * से किं तं अणंतरसिद्धकेवलणाणं? अणंतरसिद्धकेवलणाणं पण्णरसविहं पण्णत्तं तं जहा - १. तित्थसिद्धा, २. अतित्थसिद्धा ३. तित्थयरसिद्धा ४. अतित्थयरसिद्धा ५. सयंबुद्धसिद्धा ६. पत्तेयबुद्धसिद्धा ७. बुद्धबोहियसिद्धा ८. इथिलिंगसिद्धा ९. पुरिसलिंगसिद्धा १०. नपुंसगलिंगसिद्धा ११. सलिंगसिद्धा १२. अण्णलिंगसिद्धा ...१३. गिहिलिंगसिद्धा १४. एगसिद्धा १५. अणेगसिद्धा। से त्तं अणंतरसिद्धकेवलणाणं ॥२१॥ अर्थ - प्रश्न - वह अनन्तर सिद्ध केवलज्ञान क्या है ? उत्तर - अनन्तर सिद्ध केवलज्ञान के पन्द्रह भेद हैं - १. तीर्थसिद्ध २. अतीर्थसिद्ध ३. तीर्थंकर सिद्ध ४. अतीर्थंकर सिद्ध ५. स्वयंबुद्ध सिद्ध ६. प्रत्येकबुद्ध सिद्ध ७. बुद्ध-बोधित सिद्ध ८. स्त्रीलिंग सिद्ध ९. पुरुषलिंग सिद्ध १०. नपुंसकलिंग सिद्ध ११. स्वलिंग सिद्ध १२. अन्यलिंग सिद्ध १३. गृहस्थलिंग सिद्ध १४. एक सिद्ध तथा १५. अनेक सिद्ध। ये अनन्तर सिद्ध केवलज्ञान के भेद हुए। विवेचन - १. तीर्थसिद्ध - १. जिससे संसार समुद्र तिरा जाय, उस धर्म को 'तीर्थ' कहते हैं। २. जीवादि पदार्थों की सम्यक् प्ररूपणा करने वाले तीर्थंकरों के वचन को, ३. प्रथम गणधर को ४. तथा तीर्थाधार संघ को भी तीर्थ कहते हैं। यहाँ संघ की विद्यमानता में जो सिद्ध हुए वे 'तीर्थ सिद्ध' हैं। जैसे जम्बूस्वामी आदि। २. अतीर्थ सिद्ध - जो तीर्थ उत्पत्ति के पहले या तीर्थ विच्छेद के पश्चात् जाति स्मरणादि से बोध प्राप्त कर सिद्ध हुए, वे 'अतीर्थ सिद्ध' हैं। जैसे मरुदेवी माता आदि। ३. तीर्थंकर सिद्ध- जो तीर्थंकर नाम-कर्म के उदय वाले हैं, ३४ अतिशय सम्पन्न हैं, चार घाति-कर्म क्षय कर, अर्थ रूप से प्रवचन प्रकट कर गणधरादि चतुर्विध संघ की स्थापना करते हैं, ऐसे अर्हन्त को 'तीर्थंकर' कहते हैं। जो तीर्थंकर बनकर सिद्ध हुए, वे 'तीर्थंकर सिद्ध' हैं। जैसे - ऋषभदेव आदि। ४. अतीर्थंकर सिद्ध - जो तीर्थंकरत्व रहित सामान्य केवली बनकर सिद्ध हुए, वे 'अतीर्थकर सिद्ध' हैं। जैसे गजसुकुमाल आदि। ५. स्वयं बुद्ध सिद्ध - जिन्होंने गुरु उपदेश और बाह्य निमित्त के बिना, स्वयं बोध प्राप्त किया, उन्हें 'स्वयं बुद्ध' कहते हैं। जो स्वयं बुद्ध होकर सिद्ध हुए, वे 'स्वयंबुद्ध सिद्ध' हैं। जैसे कपिल-केवली आदि। ६. प्रत्येक बुद्ध सिद्ध - जिन्होंने गुरु उपदेश के बिना किसी वाह्य निमित्त से बोध प्राप्त Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004198
Book TitleNandi Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size7 MB
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