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मनःपर्यवज्ञान का विषय
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अर्थ - क्षेत्र से ऋजुमति, जघन्य से अंगुल का असंख्यातवाँ भाग जानते देखते हैं तथा उत्कृष्ट से नीचे इस रत्नप्रभा पृथ्वी के उपरिम अधस्तन क्षुद्र प्रतर तक जानते देखते हैं ऊपर ज्योतिषियों के उपरीतल तक जानते देखते हैं। तिरछे मनुष्य क्षेत्र तक जानते देखते हैं। मनुष्य क्षेत्र में अढ़ाई द्वीप हैं, दो समुद्र हैं। अढ़ाई द्वीप में पन्द्रह कर्म भूमि और तीस अकर्मभूमियाँ हैं, पहले लवण समुद्र में छप्पन अन्तर्वीप हैं। इन सब क्षेत्रों में जितने १. संज्ञी २. पंचेन्द्रिय ३. पर्याप्त पशु, मानव अथवा देव हैं, उनके मनोगत भावों को जानते-देखते हैं।
उसी क्षेत्र को विपुलमति एक दिशा से भी अढ़ाई अंगुल अधिकतर और सभी दिशाओं में भी ढ़ाई अंगुल विपुलतर जानते देखते हैं तथा उन क्षेत्र-गत मनोद्रव्यों को विशुद्धतर तथा वितिमिरतर जानते देखते हैं।
विवेचन - जिन मन:पर्यवज्ञानियों को जघन्य ऋजुमति मनःपर्यायज्ञान है, वे अपने जघन्य ऋजुमति मन:पर्याय ज्ञान द्वारा मात्र अंगुल के असंख्येय भाग में ही रहे हुए द्रव्य मन के रूपी स्कन्ध जानते देखते हैं तथा जो उत्कृष्ट ऋजुमति मनःपर्यायज्ञानी हैं, वे अपने उत्कृष्ट ऋजुमति मनः पर्याय ज्ञान द्वारा अढ़ाई-अढ़ाई अंगुल कम सहस्र १००० योजन गहरे ९०० योजन ऊँचे (१९०० योजन मोटे) ४५ लाख योजन लम्बे चौड़े तिगुनी से अधिक परिधि वाले क्षेत्र में रहे हुए संज्ञी जीवों के द्रव्य मन की पर्यायों को जानते हैं। (जो मनःपर्यवज्ञानी, मध्यम ऋजुमति मनःपर्यायज्ञान वाले हैं, वे जघन्य ऋजुमति मनःपर्यवज्ञानी की अपेक्षा कोई १. असंख्येय भाग अधिक क्षेत्र कोई २. संख्येय भाग अधिक क्षेत्र, कोई ३. संख्येय गुण अधिक क्षेत्र और कोई ४. असंख्येयगुण अधिक क्षेत्र जानते हैं।) विपुलमति मनःपर्यवज्ञानी भी इसी क्षेत्र को जानते हैं, पर प्रत्येक दिशा में अढ़ाई अढ़ाई अंगुल क्षेत्र अधिक-विपुल जानते हैं।
.३. कालओ णं उज्जुमई जहण्णेणं पलिओवमस्स असंखिजयभाग, उक्कोसेण वि पलिओवमस्स असंखिजयभागं अतीयमणागयं वा कालं जाणइ पासइ, तं चेव विउलमई अब्भहियतरागं विउलतरागं विसुद्धतरागं वितिमिरतरागं जाणइ पासइ।
अर्थ - काल से ऋजुमति जघन्य से पल्योपम का असंख्येय भाग बीता हुआ और बीतने वाला जानते देखते हैं और उत्कृष्ट से भी पल्योपम का असंख्येय भाग बीता हुआ और बीतने वाला जानते देखते हैं। उसी काल को विपुलमति अधिकता से, विपुलता से, विशुद्धता से और वितिमिरता से जानते देखते हैं।
_ विवेचन - जो मनःपर्यवज्ञानी, जघन्य ऋजुमति मनःपर्याय ज्ञान वाले हैं, वे अपने जघन्य ऋजुमति मनःपर्यायज्ञान के द्वारा उक्त क्षेत्र में किस संज्ञी जीव की बीते हुए पल्योपम के असंख्येय
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