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________________ ६८ - ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र SECREEEEEEEEEEEEEEEEEEKEcccccccccccccccccccccccccccx भावार्थ - अमात्य सुबुद्धि ने राजा के इस कथन को स्वीकार किया। तदनंतर सुबुद्धि के.. साथ मानव जीवन संबंधी विपुल सुख भोग भोगते हुए बारह वर्ष व्यतीत हो गए। उस काल, उस समय स्थविर मुनियों का आगमन हुआ। राजा जितशत्रु ने उनसे धर्म सुना। यहाँ इतना अंतर या विशेष बात है, उसने धर्म सुनकर स्थविरों से कहा - मैं सुबुद्धि को मेरे साथ दीक्षा लेने हेतु आमंत्रित कर लूं। ज्येष्ठ पुत्र को राज्य भार सौंप दूं, ऐसा कर मैं आपके पास मुनि दीक्षा ग्रहण करूँगा। स्थविर भगवंत बोले-देवानुप्रिय! जिससे तुम्हें सुख हो, वैसा करो। ___ तदनंतर राजा जितशत्रु अपने महल में आया और सुबुद्धि से कहा - मैं स्थविर मुनियों से यावत् दीक्षा ग्रहण करूँगा, क्या तुम भी ऐसा करोगे? ____तब सुबुद्धि ने राजा जितशत्रु से इस प्रकार कहा - राजन! आप प्रव्रज्या ले रहे हैं तो इस संसार में मेरे लिए और क्या आधार है? अर्थात् मैं भी दीक्षा लूँगा। ___ (२८) तं जइ णं देवाणुप्पिया! जाव पव्वयह। गच्छह णं देवाणुप्पिया! जेट्टपुत्तं च कुडंबे ठावेहि २ त्ता सीयं दुरुहित्ताणं ममं अंतिए सीया जाव पाउन्भवइ। तए णं सु० जाव पाउन्भवइ तए णं जियसत्तू कोडुंबिय पुरिसे सद्दावेइ २ त्ता एवं वयासीगच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया! अदीणसत्तूस्स कुमारस्स रायाभिसेयं उवट्ठवेह जाव अभिसिंचंति जाव पव्वइए। भावार्थ - राजा जितशत्रु ने सुबुद्धि से कहा - देवानुप्रिय! यदि तुम प्रव्रज्या स्वीकार करना चाहते हो यावत् जाओ अपने ज्येष्ठ पुत्र को कुटुम्ब का भार सौंपो, शिविका पर आरूढ . होकर मेरे पास आओ। ____तब सुबुद्धि अमात्य शिविका पर आरूढ हुआ यावत् राजा के पास पहुँचा। तदनंतर राजा ने अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और उनसे कहा - देवानुप्रियो! जाओ राजकुमार अदीनशत्रु के राज्याभिषेक की व्यवस्था करो यावत् राज्याभिषेक संपन्न हुआ यावत् राजा जितशत्रु और अमात्य सुबुद्धि प्रव्रजित हुए। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
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