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________________ ५६ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र Aammmmmmmmmmmmmmmmmmmnnn M a a neerwarmerserveersearera P REPROSPERORE BANDHANBeat (१५) तए णं सुबुद्धिस्स इमेयारूवे अज्झथिए० समुप्पजित्था - अहो णं जियसत्तू संते तच्चे तहिए अवितहे सब्भूए जिणपण्णत्ते भावे णो उवलभइ। तं सेयं खलु मम जियसत्तुस्स रण्णो संताणं तच्चाणं तहियाणं अवितहाणं सन्भूयाणं जिणपण्णत्ताणं भावाणं अभिगमणट्टयाए एयमठं उवाइणावेत्तए। - शब्दार्थ - संते - सत्, तच्चे - तत्त्व, तहिए - तथ्य, अवितहे. - सत्य, सन्भूए - सद्भूत-सत्तायुक्त, अभिगमणट्टयाए - सम्यक् अवबोध हेतु-भलीभांति ज्ञान कराने हेतु, उवाइणावेत्तए - अंगीकार कराऊँ। भावार्थ - राजा जितशत्रु का यह कथन सुनने के पश्चात् अमात्य सुबुद्धि के मन में इस प्रकार का विचार यावत् मनोभाव उत्पन्न हुआ कि राजा जितशत्रु सर्वज्ञ प्ररूपित तत्त्व को यथार्थ रूप में स्वीकार नहीं करता। इसलिए अच्छा हो कि मैं राजा जितशत्रु को जिन प्ररूपित सद्भूत, यथार्थ भावों को स्वीकार कराऊँ। मलिन जल का सुपेय जल में रूपांतरण (१६) __एवं संपेहेइ २ ता पच्चइएहिं पुरिसेहिं सद्धिं अंतरावणाओ णवए घडए य पडए य पगेण्हइ २ त्ता संझाकालसमयंसि पविरलमणुस्संति णिसंतपडिणिसंतंसि जेणेव फरिहोदए तेणेव उवागए २ त्ता तं फरिहोदगं गेण्हावेइ २ ता णवएसु घडएसु गालावेइ २ त्ता णवएसु घडएसु पक्खिवावेइ २ त्ता सजखारं पक्खिवावेइ लंछियमुद्दिए करावेइ २ ता सत्तरत्तं परिवसावेइ, परिवसावेत्ता दोच्वंपि णवएसु घडएसु गालावेइ, गालावेत्ता णवएसु घडएसु पक्खिवावेइ, पक्खिवावेत्ता सजक्खारं पक्खिवावेइ, पक्खिवावेत्ता लंछियमुद्दिए कारवेइ कारवेत्ता सत्तरत्तं परिवसावेइ २ त्ता तच्चपि णवेसु घडएसु जाव संवसावेइ। शब्दार्थ - पच्चइएहिं - विश्वस्त, अंतरावणाओ - ग्रामांतरवर्ती दूकान से, सजखारं - साजी का खार। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
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