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- ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र ScooccccccGEEEEEEEGaacocccccccccccccccccccccces चंदं पणिहाय हीणतराए वण्णेणं जाव मंडलेणं। तयाणंतरं च णं तइयाचंदे बीयाचंदं पणिहाय हीणतराए वण्णेणं जाव मंडलेणं। एवं खलु एएणं कमेणं परिहायमाणे २ जाव अमावस्साचंदे चाउद्दसिचंदं पणिहाय णट्टे वण्णेणं जाव णडे मंडलेणं। एवामेव समणाउसो! जो अम्हं णिगंथो वा २ जाव पव्वइए समाणे हीणे खंतीए एवं मुत्तीए गुत्तीए अज्जवेणं मद्दवेणं लाघवेणं सच्चेणं तवेणं चियाए अकिंचणयाए बंभचेरवासेणं । तयाणंतरं च णं हीणे हीणतराए खंतीए जाव हीणतराए बंभचेरवासेणं। एवं खलु एएणं कमेणं परिहायमाणे २ णढे खंतीए जाव णटे बंभचेरवासेणं।
शब्दार्थ - बहुलपक्खस्स - कृष्ण पक्ष की, पाडिवयाचंदे - प्रतिपदा का चंद्र, पणिहायअपेक्षा से, हीणे - न्यून, सोम्मयाए - सौम्यता-नेत्रों को आह्लादकता उत्पन्न करने वाले, णिद्धयाए - स्निग्घता से-अरूक्षता से, कंतीए - कांति से, जुइए - धुति से, ओयाए - दाहशमन रूप ओजस से, लेस्साए - लेश्या-किरणों का स्वरूप, मंडलेणं - वृत्ताकार से, बीयाचंदं - द्वितीया का चंद्र, तइयाचंदे - तृतीया का चंद्र, णटे - नष्ट, चियाए - त्याग से।
भावार्थ- हे गौतम! जैसे कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा का चंद्र पूर्णिमा के चंद्रमा से वर्ण, सौम्यता, स्निग्यता, कांति, दीप्ति, छाया, प्रभा, ओजस, लेश्या और मंडल की अपेक्षा हीन होता है। उसी प्रकार द्वितीया का चंद्र प्रतिपदा के चंद्र से वर्ण यावत् मंडल में हीनतर होता है। तृतीया का चन्द्र द्वितीया के चन्द्र से वर्ण यावत् मंडल में हीनतर होता है। इसी क्रम से हीन होता हुआ यावत् अमावस्या का चन्द्र चतुर्दशी के चन्द्र से वर्ण यावत् मण्डल पर्यंत विलुप्त-हीनतम हो जाता है।
हे आयुष्मान् श्रमणो! जो साधु या साध्वी यावत् प्रव्रजित होकर शान्ति, मुक्ति, गुप्ति, आर्जव, मार्दव, लाघव, सत्य, तप, अकिंचनता तथा ब्रह्मचर्यवास में हीन, हीनतर होते जाते हैं यावत् इस क्रम से वे उत्तरोत्तर परिहीन होते होते, क्षांति यावत् ब्रह्मचर्यवास की दृष्टि से सर्वथा हीन, विमुख हो जाते हैं।
वृद्धि का विकास क्रम
से जहा वा सुक्क पक्खस्स पडिवयाचंदे अमावसाचंदं पणिहाय अहिए वण्णेणं
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