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________________ ३० . ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र accccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccx . शब्दार्थ - विगयघण - मेघ रहित, पिवासागयाए - प्यास युक्त। .. • भावार्थ - नाथ! तुम्हारा मुख मेघ रहित, निर्मलचन्द्र के समान है। तुम्हारे नेत्र शरद ऋतु के अभिनव कमल, कुमद और कुवलय-नीलकमल के पत्रों के सद्दश अत्यंत शोभायुक्त हैं। . ऐसे नेत्र युक्त तुम्हारे मुख के दर्शन की पिपासा लिए मैं यहाँ आई हूँ। अब तुम मेरी ओर देखो, मैं तुम्हारे मुख कमल का दर्शन कर लूँ। (५५) एवं सप्पणयसरलमहुराई पुणो पुणो कलुणाई वयणाई जंपमाणी सा पावा . मग्गओ समण्णेइ पावहियया॥८॥ शब्दार्थ - सप्पणय - सप्रणय-प्रेम पूर्ण, समण्णेइ - अनुसरण करने लगी। भावार्थ - जिसका हृदय पाप से भरा था, वैसी वह रत्नद्वीप देवी बार-बार प्रेम पूर्ण, सरल, मधुर, करुणा पूर्ण वचन बोलती हुई मार्ग में उनका अनुसरण करने लगी - पीछे-पीछे चलने लगी। (५६) तए णं से जिणरंक्खिए चलमणे तेणेव भूसणरवेणं कण्णसुहमणोहरेणं तेहि य सप्पणयसरल महरभणिएहिं संजायविउणराए रयणदीवस्स देवयाए तीसे सुंदरथणजहण-वयणकरचरणणयणलावण्णरूवजोवण्णसिरिं च दिव्वं सरभसउवगू-हियाइं (जाति) बिब्बोयविलसियाणि य विहसियसकडक्खदिट्ठिणिस्ससिय-मलियउवललिय (ठि) थियगमणपणयखिजियपासाइयाणि य सरमाणे राग-मोहियमई अवसे कम्मवसगए अवयक्खइ मग्गओ सविलियं। । शब्दार्थ - संजायविउणराए - दुगुने अनुराग से युक्त, सरभसउवगूहियाइं - तीव्र कामौत्सुक्यपूर्ण आलिंगन, सकडक्खदिट्ठि - कटाक्षपूर्ण दृष्टि, णिस्ससिय - आहपूर्ण श्वास, मलिय - मर्दन, उवललिय - उपललित क्रीड़ा विशेष, खिजिय - कामकलह, सरमाणे - स्मरण करता हुआ, अवसे - विवश-मजबूर, सविलियं - लज्जा पूर्वक। भावार्थ - तदनंतर कानों को सुख देने वाले, मन को हरने वाले आभूषणों की ध्वनि से तथा उसके प्रेम युक्त सरल वचनों से जिनरक्षित विचलित हो उठा, उसका राग दुगुना हो गया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
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