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माकन्दी नामक नववां अध्ययन - देवी का दुष्प्रयास Saaaacocccccccccccccccccccccccccccccccccccecaceae हो गए हैं तो वह सात आठ ताड़ वृक्ष प्रमाण ऊँचा आकाश में उड़ा। उड़ कर उत्कृष्ट देवगति से लवण समुद्र के बीचोंबीच होता हुआ जंबूद्वीप, भरतक्षेत्र, चंपानगरी की ओर चल पड़ा।
(४३)
.. तए णं सारयणदीवदेवया लवण समुदं तिसत्तखुत्तो अणुपरियट्टेइ जं तत्थ तणं वा जाव एडेइ २ ता जेणेव पासायवडेंसए तेणेव उवागच्छइ २ ता ते मागंदियदारया पासायवडेंसए अपासमाणी जेणेव पुरथिमिल्ले वणसंडे जाव सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करेइ २ ता तेसिं मागंदियदारगाणं कत्थइ सुई वा ३ अलभमाणी जेणेव उत्तरिल्ले (वणसंडे) एवं चेव पच्चथिमिल्ले वि जाव अपासमाणी ओहिं पउंजइ० ते मागंदियदारए सेलएणं सद्धिं लवण समुदं मझमझेणं वीईवयमाणे २ पासइ २ त्ता आसुरुत्ता असिखेडगं गेण्हइ २ त्ता सत्तट्ट जाव उप्पयई २ त्ता ताए उक्किट्ठाए जेणेव मागंदियदारगा तेणेव उवागच्छइ २ ता एवं वयासी -
शब्दार्थ - सुइं - श्रुति-वार्तालाप श्रवण, खुइं - क्षुति-छींक, पउत्ति - प्रवृत्ति-वृत्तांत। ... भावार्थ - तत्पश्चात् रत्नद्वीप देवी लवण समुद्र का इक्कीस बार चक्कर लगाकर, वहां से घास यावत् कचरा आदि हटवा कर, अपने उत्तम प्रासाद में आई। जब उसने वहाँ माकंदी पुत्रों को नहीं देखा तो उसने पूर्वी वनखण्ड में यावत् सर्वत्र उनको ढूंढा। किन्तु उनकी बातचीत, छींक और प्रवृत्ति आदि के रूप में कोई भी उपस्थिति का लक्षण ज्ञात नहीं हुआ। फिर वह क्रमशः उत्तरी एवं पश्चिमी वनखंड में गई यावत् उसे उनके वहाँ होने का कोई चिह्न नहीं मिला। तब उसने अवधि (विभंगज्ञान) का प्रयोग किया और माकंदी पुत्रों को शैलक यक्ष के साथ, लवण समुद्र के बीचों-बीच जाते हुए देखा। वह अत्यंत क्रुद्ध हुई। तलवार ढाल लेकर सात-आठ ताड़ प्रमाण आकाश में ऊपर उड़ी यावत् उत्कृष्ट देवगति से वहाँ पहुँची जहाँ शैलक द्वारा माकंदी पुत्र ले जाए जा रहे थे, वह बोली।
देवी का दुष्प्रयास
(४४) . हं भो मागंदियदारगा! अपत्थियपत्थिया! किण्णं तुन्भे जाणह ममं विप्पजहाय
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