________________
२४
. .
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र පපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපුදු
(४०) तए णं ते मागंदियदारगा सेलगं जक्खं एवं वयासी-जं णं देवाणुप्पिया! वइस्संति तस्स णं उववायवयणणिद्देसे चिट्ठिस्सामो।
भावार्थ - माकंदी पुत्रों ने शैलक यक्ष से निवेदन किया-देवानुप्रिय! आप जैसा कहेंगे, हम उस आदेश, निर्देश का सेवक की तरह अनुसरण, पालन करेंगे। देवी के चुंगल से मुक्ति का प्रयास .. (४१)
. तए णं से सेलए जक्खे उत्तरपुरच्छिमं दिसीभागं अवक्कमइ २ ता वेउब्वियसमुग्घाएणं समोहणइ २ ता संखेजाइं जोयणाई दंडं णिस्सरइ दोच्वंपि तच्चंपि वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहणइ २ त्ता एगं महं आसरूवं विउव्वइ २ ता ते मागंदियदारए एवं वयासी-हं भो मागंदियदारया! आरुह णं देवाणुप्पिया मम पिटुंसि।
भावार्थ - तदनंतर शैलक यक्ष उत्तर-पूर्व दिशा भाग में गया। वहां जाकर उसने वैक्रिय समुद्घात कर संख्यात योजन का दण्ड बनाया। दूसरी बार और तीसरी बार भी वैक्रिय समुद्घात से विकुर्वणा द्वारा अश्वरूप धारण किया। ऐसा कर वह माकंदी पुत्रों से बोला-देवानुप्रियो! मेरी पीठ पर आरूढ हो जाओ।
(४२) तए णं ते मागंदियदारया हट्ट० सेलगस्स जक्खस्स पणामं करेंति २ त्ता सेलगस्स पिट्टि दुरूढा। तए णं से सेलए ते मागंदियदारए दुरूढे जाणित्तो सत्तट्ठतालप्पमाणमेत्ताई उहं वेहासं उप्पयइ २ ता य ताए उक्किट्ठाए तुरियाए (चवलाए चंडाए दिव्वाए) देवयाए देवगईए लवणसमुई मझमझेणं जेणेव जंबूहीवे दीवे जेणेव भारहे वासे जेणेव चंपा णयरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए।
भावार्थ - माकंदी पुत्र यह सुनकर बड़े हर्षित एवं परितुष्ट हुए। उन्होंने शैलक को प्रणाम किया तथा उसकी पीठ पर सवार हो गए। शैलक ने जब देखा-माकंदी पुत्र उसकी पीठ पर सवार
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org