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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध
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उसी प्रकार राई देवी भगवान् महावीर स्वामी की सेवा में उपस्थित हुई। उसने वहाँ बहुत प्रकार के नाटक दिखलाए। यह देखकर श्री गौतम स्वामी ने प्रभु महावीर स्वामी को वंदन, नमन कर राई देवी के पूर्व भव के वृत्तांत के संबंध में जिज्ञासा की ।
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सूत्र - ३८
एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं आमलकप्पों णयअंबसालवणे चेइए जियसत्तू राया राई गाहावई राईसिरी भारिया राई दारिया पासस्स समोसरणं राई दारिया जहेव काली तहेव णिक्खंता तहेव सरीरबाउंसिया तं चैव सव्वं जाव अंतं काहि ।
भावार्थ - भगवान् महावीर स्वामी ने कहा- हे गौतम! उस काल, उस समय आमलकल्पा नामक नगरी थी। वहाँ आम्रशालवन नामक उद्यान था । जितशत्रु वहाँ का राजा था। वहाँ राई नामक गाथापति रहता था । उसकी पत्नी का नाम राईश्री था । उसके राई नामक पुत्री थी । किसी समय भगवान् पार्श्वनाथ का पदार्पण हुआ। जिस तरह काली उनकी सेवामें गई थी, उसी तरह राई उनकी सेवामें गई। शेष वर्णन काली देवी जैसा ही है। काली की ही तरह वह शरीर प्रक्षालन में आसक्त हो गई। सब उसी तरह करती रही यावत् वह महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होकर सिद्धि प्राप्त करेगी ।
सूत्र - ३६
एवं खलु जंबू ! बिइयज्झयणस्स णिक्खेवओ । श्री सुधर्मा स्वामी ने कहा
भावार्थ
वृत्तांत है।
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हे जंबू ! द्वितीय अध्ययन का यह निक्षेप संक्षिप्त
॥ द्वितीय अध्ययन समाप्त ॥
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