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प्रथम वर्ग-राई नामक द्वितीय अध्ययन
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राई णामं बीयं अज्झयणं राई नामक द्वितीय अध्ययन
सूत्र-३५ . जइ णं भंते समणेणं० धम्मकहाणं पढमस्स वग्गस्स पढमज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते बिइयस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं (३) जाव संपत्तेणं के अट्टे पण्णत्ते? .. भावार्थ - आर्य जंबू ने श्री सुधर्मा स्वामी से प्रश्न किया - भगवन्! श्रमण यावत् सिद्धि प्राप्त भगवान् महावीर स्वामी ने धर्म कथा के प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन का यह आशय परिज्ञापित किया है तो कृपया बतलाएं, उन्होंने दूसरे अध्ययन का क्या अभिप्राय बतलाया है?
सूत्र-३६ एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णयरे गुणसिलए चेइए सामी समोसढे परिसा णिग्गया जाव पज्जुवासइ।
- भावार्थ - श्री सुधर्मा स्वामी ने कहा - हे जंबू! इस काल, उस समय राजगृह नगर में गुणशील नामक चैत्य था। भगवान् महावीर स्वामी का वहाँ पदार्पण हुआ। जनसमुदाय दर्शन, वंदन हेतु आया यावत् भगवान् की धर्मदेशना सुनी और उनकी पर्युपासना में निरत हुआ। भगवान् की सेवा में राईदेवी का आगमन
सूत्र-३७ तेणं कालेणं तेणं समएणं राई देवी चमरचंचाए रायहाणीए एवं जहा काली तहेव आगया णट्टविहिं उवदंसित्ता पडिगया। भंतेत्ति! भगवं गोयमे पुव्वभवपुच्छा।
भावार्थ - उस काल उस समय जिस प्रकार चमरचंचा राजधानी से काली देवी आई थी, .
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