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________________ ३२२ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध saacococcaRCECREGeorecacaaaaaacaaccccccccccce सूत्र-१८ तए णं सा काली दारिया पासस्स अरहओ पुरिसादाणीयस्स अंतिए धम्म सोच्चा णिसम्म हट्ट जाव हियया पासं अरहं पुरिसादाणीयं तिक्खुत्तो वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-सद्दहामि णं भंते! णिग्गंथं पावयणं जाव से जहेयं तुन्भे वयह जं णवरं देवाणुप्पिया! अम्मापियरो आपुच्छामि। तए णं अहं देवाणुप्पियाणं अंतिए जाव पव्वयामि। अहासुहं देवाणुप्पिए। ____ भावार्थ - काली भगवान् पार्श्वनाथ का धर्मोपदेश सुनकर बड़ी हर्षित हुई यावत् उसके हृदय में बड़ा ही आनंद उत्पन्न हुआ। उसने भगवान् पार्श्वनाथ को तीन बार वंदन, नमन किया और निवेदन किया-भगवन्! मैं निर्ग्रन्थ प्रवचन में श्रद्धा करती हूँ यावत् वह वैसा ही है, जैसा आप फरमाते हैं। देवानुप्रिय! मैं केवल माता-पिता की अनुज्ञा ले लूं फिर आपके पास यावत् मुण्डित प्रव्रजित होकर श्रमण दीक्षा ले लूँ। प्रभु पार्श्वनाथ ने फरमाया - देवानुप्रिये! जिससे तुम्हें सुख हो, वैसा ही करो। सूत्र-१६ . तए णं सा काली दारिया पासेणं अरहया पुरिसादाणीएणं एवं वुत्ता समाणी हट्ट जाव हियया पासं अरहं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता तमेव धम्मियं जाणप्पवरं दुरूहइ २ त्ता पासस्स अरहओ पुरिसादाणीयस्स अंतियाओ अंबसालवणाओ चेइयाओ पडिणिक्खमइ २ ता जेणेव आमलकप्पा णयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता आमलकप्पं णयरिं मज्झंमज्झेणं जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धम्मियं जाणप्पवरं ठवेइ २ त्ता धम्मियाओ जाणप्पवराओ पचोरुहइ २ त्ता जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल (परिग्गहियं) जाव एवं वयासी भावार्थ - वह काली भगवान् पार्श्वनाथ द्वारा यों कहे जाने पर बहुत हर्षित यावत् आनंदित हुई। भगवान् को वंदन नमन किया। धार्मिक यान पर आरूढ़ होकर आम्रशालवन से रवाना हुई। आमलकल्पा नगरी में पहुंची। उसके बीचोबीच होती हुई बाहरी उपस्थानशाला में गई। वहाँ धार्मिक यान को रोका, उससे नीचे उतरी और जहाँ माता-पिता थे, वहाँ जाकर इस प्रकार बोली - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
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