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प्रथम वर्ग-काली नामक प्रथम अध्ययन - काली द्वारा दर्शन, वंदन ३२१ RecccccccccccccccccccxccccccccccccesKaramcccsex बड़ा आनंद उत्पन्न हुआ। अपने माता-पिता के पास आई। हाथ जोड़ कर यावत् मस्तक पर अंजलि बांधे बोली-माता-पिता! पुरुषादानीय, तीर्थंकर, आदिकर-धर्मतीर्थ के प्रवर्तक, भगवान् पार्श्वनाथ यावत् यहाँ आमलकल्पा नगरी में, आम्रशालवन में विराजित हैं। मैं आपसे आज्ञा लेकर भगवान् के चरण-वंदन हेतु जाना चाहती हूँ। माता-पिता ने कहा-पुत्री! जिससे तुम्हें सुख हो, वैसा करो। उत्तम कार्य में विलंब मत करो।
. सूत्र-१६ तए णं सा काली दारिया अम्मापिइहिं अब्भणुण्णाया समाणी हट्ट जाव हियया. पहाया कयबलिकम्मा कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ता सुद्धप्पवेसाई मंगल्लाइं वत्थाई पवर परिहिया अप्पमहग्याभरणालंकियसरीरा चेडियाचक्कवाल परिकिण्णा साओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव धम्मिए जाणप्पवरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धम्मियं जाणप्पवरं दुखढा। ___ भावार्थ - गाथापति पुत्री काली माता-पिता की आज्ञा प्राप्त कर हर्षित यावत् प्रसन्न हुई। उसने स्नान, बलिकर्म, मंगलोपचार, प्रायश्चित्तादि दैनिक कृत्य किए। शुद्ध मांगलिक वस्त्र धारण किए। बहुमूल्य अलंकार पहने। दासियों के समूह से घिरी हुई घर से निकली। बाह्य उपस्थान शाला में आई। वहाँ आकर धार्मिक कार्यों में प्रयोज्य श्रेष्ठ यान पर आरूढ़ हुई। .
सूत्र-१७ तए णं सा काली दारिया धम्मियं जाणप्पवरं एवं जहा दोवई जाव तहा पज्जुवासइ। तए णं पासे अरहा पुरिसादाणीए कालीए दारियाए तीसे य महइमहालियाए परिसाए धम्मं कहेइ। __- भावार्थ - धार्मिक यान पर सवार गाथापति पुत्री काली वहाँ से चली। यहाँ का विस्तृत वर्णन द्रौपदी के वृत्तांत की तरह योजनीय है यावत् वह भगवान् पार्श्वनाथ के सान्निध्य में पहुँची, वंदन, नमन किया, पर्युपासनारत हुई। भगवान् पार्श्वनाथ ने गाथापति कन्या काली को तथा वहाँ उपस्थित अति विशाल परिषद् को धर्मोपदेश दिया।
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