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• ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध
सूत्र-१० तए णं तीसे कालीए देवीए इमेयारूवे जाव समुप्पजित्था-सेयं खलु मे समणं ३ वंदित्ता जाव पज्जुवासित्तए - त्ति कट्ट एवं संपेहेइ २त्ता आभिओगिए. देवे सहावेइ २ त्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! समणे ३ एवं जहा सूरियाभो तहेव आणत्तियं देइ जाव दिव्वं सुरवराभिगमणजोग्गं करेह २ त्ता जाव पचप्पिणह। तेवि तहेव करेत्ता जाव पच्चप्पिणंति। णवरं जोयणसहस्स-वित्थिण्णं जाणं सेसं तहेव। तहेव णामगोयं साहेइ तहेव णट्टविहिं उवदंसेइ जाव पडिगया।
भावार्थ - तदनंतर काली देवी के मन में ऐसा भाव यावत् संकल्प उत्पन्न हुआ-मेरे लिए यह श्रेयस्कर होगा कि मैं भगवान् महावीर स्वामी की वंदना यावत् पर्युपासना करने जाऊं। यों विचार कर उसने अपने आभियोगिक देवों को बुलाया और उनसे कहा - देवानुप्रियो! सूर्याभदेव की तरह भगवान् महावीर स्वामी के समक्ष नाट्य आदि प्रदर्शन की व्यवस्था करो यावत् देवों के गमन योग्य विमान तैयार करो। यह व्यवस्था कर मुझे अवगत कराओ। उन्होंने वैसा ही किया यावत् काली देवी को अवगत कराया। यहाँ विशेषता यह है कि जो यान तैयार किया गया, वह एक हजार योजन विस्तीर्ण था। शेष सारा वर्णन सूर्याभ देव की तरह है।
उस यान द्वारा काली देवी अपने देव-देवी परिवार सहित वहाँ पहुँची। अपना नाम व गोत्र बतलाया एवं विविध प्रकार के नाटकों का प्रदर्शन किया यावत् वैसा कर वह वापस लौट गई।
सूत्र-११ भंते त्ति! भगवं गोयमे समणं ३ वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासीकालीए णं भंते! देवीए सा दिव्वा देविड्डी ३ कहिं गया०? कूडागारसालादिटुंतो।
भावार्थ - गौतम स्वामी ने प्रभु महावीर स्वामी को 'भंते' शब्द द्वारा संबोधित कर वंदन, नमन किया और जिज्ञासा की-भगवन्! काली देवी की वह दिव्य ऋद्धि कहां चली गई? ___भगवान् ने पूर्व वर्णित कूटागार शाला के दृष्टांत ० से इस जिज्ञासा का समाधान किया।
० अध्ययन-१३ सूत्र ४ (विवेचन देखें)
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