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________________ प्रथम वर्ग-काली नामक प्रथम अध्ययन - कालीदेवी का ऐश्वर्य ३१७ SKREKEEPERCEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEKKERENCERNEDROORK २ ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ २ त्ता पाउया ओमुयइ २ ता तित्थगराभिमुही सत्तट्ठ पयाई अणुगच्छइ २ त्ता वामं जाणुं अंचेइ २ त्ता दाहिणं जाणुं धरणियलंसि णिहह तिक्खुत्तो मुद्धाणं धरणियलंसि णिवेसेड़ (०) ईसिं पच्चुण्णमइ २ त्ता कडयतुडियर्थभियाओ भुयाओ साहरइ २ त्ता करयल जाव कट्ट एवं वयासी शब्दार्थ - केवलकप्पं - संपूर्ण, अंचेइ - ऊँचा किया, ईसिं - कुछ, पच्चुण्णमइ - मस्तक ऊपर की ओर उठाया, साहरइ - उतारे। भावार्थ - उस काली देवी ने विपुल अवधिज्ञान का प्रयोग करते हुए समग्र जंबू द्वीप को देखा। वहाँ भारतवर्ष में, राजगृह नगर के अंतर्गत, गुणशील चैत्य में, यथाप्रतिरूप-आचार मर्यादानुरूप. स्थान में अवस्थित, संयम, तप द्वारा आत्मानुभावित होते हुए, श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को देखा। वह हर्षित, परितुष्ट, आनंदित हुई। उसके मन में भक्ति का उद्रेक हुआ। मन में हर्ष छा गया। वह अपने सिंहासन से उठी। पादपीठ पर पैर रखकर नीचे उतरी। अपनी पादुकाएँ उतारी। तीर्थंकर भगवान् के सम्मुख सात-आठ कदम आगे चली। फिर अपना बायां घुटना ऊंचा उठाया, दाहिना घुटना भूतल पर रखा। तीन बार मस्तक से पृथ्वी का संस्पर्श किया। फिर मस्तक को ऊँचा किया, कड़े और बाजूबंद सहित हाथों को मिलाया। हाथ जोड़कर यावत् मस्तक पर अंजलि बांधे उसने कहा - . सूत्र-६ णमोत्थु णं अरहंताणं भगवंताणं जाव संपत्ताणं। णमोत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव संपाविउकामस्स। वंदामि णं भगवंतं तत्थगयं इहग(ए)या पासउ मे समणे ३ तत्थ-गए इह गयं तिकटु वंदइ णमंसइ वं० २ त्ता सीहासणवरंसि पुरत्थाभिमुहा णिसण्णा। - भावार्थ - उन अरहंत भगवंतों को यावत् जिन्होंने मोक्ष प्राप्त कर लिया है, नमस्कार हो। भगवान् महावीर स्वामी को यावत् जो मोक्ष गमनोद्यत हैं, नमस्कार हो। यहाँ स्थित मैं, वहाँ भरत क्षेत्र, राजगृह नगर गुणशील चैत्य में स्थित भगवान्, महावीर स्वामी को वंदन करती हूँ। वहाँ विद्यमान् भगवान् महावीर स्वामी यहाँ स्थित मुझे देखें। यों कह कर उसने वंदन, नमन किया और पूर्व दिशा की ओर मुख कर सिंहासन पर बैठी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004197
Book TitleGnata Dharmkathanga Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages386
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size7 MB
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