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प्रथम वर्ग-काली नामक प्रथम अध्ययन
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२. वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि की अग्रमहीषियों का द्वितीय वर्ग।
३. असुरेन्द्र वर्जित अवशिष्ट नौ दक्षिण दिशावर्ती भवनपति इन्द्रों की अग्रमहीषियों का तृतीय वर्ग।
४. असुरेन्द्र वर्जित उत्तर दिशावर्ती भवनपति इन्द्रों की अग्रमहीषियों का चतुर्थ वर्ग। ५. दक्षिण दिशावर्ती वाणव्यंतर देवों के इन्द्रों की अग्रमहीषियों का पंचम वर्ग। ६. उत्तरदिशावर्ती वाणव्यंतर देवों के इन्द्रों की अग्रमहीषियों का षष्ठ वर्ग। ७. चन्द्र देव की अग्रमहीषियों का सप्तम वर्ग। ८. सूर्य देव की अग्रमहीषियों का अष्टम वर्ग। ६. शक्रेन्द्र की अग्रमहीषियों का नवम वर्ग। १०. ईशानेन्द्र की अग्रमहीषियों का दशम वर्ग।
सूत्र-५ ... जइ णं भंते! समणेणं० धम्मकहाणं दस वग्गा पण्णत्ता। पढमस्स णं भंते! वग्गस्स समणेणं० के अढे पण्णत्ते।
एवं खलु जंबू! समणेणं० पढमस्स वग्गस्स पंच अज्झयणा पण्णत्ता तंजहाकाली रायी रयणी विज्जू मेहा। जइ णं भंते! समणेणं० पढमस्स वग्गस्स पंच अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं० के अढे पण्णत्ते? ___ भावार्थ - हे भगवन्! श्रमण यावत् सिद्धि प्राप्त भगवान् महावीर स्वामी ने यदि धर्मकथा नामक द्वितीय श्रुतस्कन्ध के दस वर्ग बतलाए हैं तो कृपया फरमाएं, सिद्धि प्राप्त यावत् श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने प्रथम वर्ग का क्या विस्तार-अर्थ कहा है?
श्री सुधर्मा स्वामी बोले-श्रमण यावत् सिद्धि प्राप्त भगवान् महावीर स्वामी ने प्रथम वर्ग के पांच अध्ययन बतलाए हैं। वे इस इस प्रकार हैं - १. काली २. राई ३. रयणी ४. विज्जू तथा ५. मेहा।
__जंबू स्वामी ने पुनः जिज्ञासा की - श्रमण यावत् सिद्धि प्राप्त भगवान् महावीर स्वामी ने पहले वर्ग के यदि पांच अध्ययन बतलाएं हैं तो प्रथम अध्ययन का उन्होंने क्या अर्थ प्रतिपादित किया है? .
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