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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र - द्वितीय श्रुतस्कन्ध । පපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපපා
सूत्र-३ परिसा णिग्गया धम्मो कहिओ, परिसा जामेव दिसिं पाउन्भूया तामेव दिसिं पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं अज्जसुहम्मस्स अणगारस्स अंतेवासी अज्ज जंबू णामं अणगारे जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी-जइ णं भंते! समणेणं (३) जाव संपत्तेणं छट्ठस्स अंगस्स पढमस्स सुयक्खंधस्स णायसुयाणं अयमढे पण्णत्ते दोच्चस्स णं भंते! सुयक्खंधस्स धम्मकहाणं समजेणं के अट्टे पण्णत्ते?
भावार्थ - श्री सुधर्मा स्वामी को वंदन, नमन करने हेतु परिषद् आई। आर्य सुधर्मा ने धर्मोपदेश दिया। धर्मोपदेश सुनकर परिषद् जिस दिशा से आई थी, उसी ओर लौट गई।
उस काल, उस समय आर्य सुधर्मा स्वामी के जम्बू नामक अंतेवासी यावत् उनकी पर्युपासना करते हुए उनसे बोले-भगवन्! सिद्धि-प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने छट्टे अंग ज्ञाताध्ययन के प्रथम श्रुतस्कन्ध-ज्ञात श्रुतस्कन्ध का यह अर्थ बतलाया है तो सिद्धि प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने यावत् दूसरे धर्मकथा संज्ञक श्रुतस्कन्ध का क्या अर्थ फरमाया है? -
सूत्र-४ . ' एवं खलु जंबू! समणेणं० धम्मकहाणं दस वग्गा पण्णत्ता तंजहा-चमरस्स अग्गमहिसीणं पढमे वग्गे, बलिस्स वइरोयणिंदस्स वइरोयणरण्णो अग्गमहिसीणं बीए वग्गे असुरिंदवज्जियाणं दाहिणिल्लाणं इंदाणं अग्गमहिसीणं तइए वग्गे, उत्तरिल्ला णं असुरिंदवज्जियाणं भवणवासिइंदाणं अग्गमहिसीणं चउत्थे वग्गे दाहिणिल्लाणं वाणमंतराणं इंदाणं अग्गमहिसीणं पंचमे वग्गे, उत्तरिल्लाणं वाणमंतराणं इंदाणं अग्गमहिसीणं छठे वग्गे, चंदस्स अग्गमहिसीणं सत्तमे वग्गे, सूरस्स अग्गमहिसीणं अट्ठमे वग्गे सक्कस्स अग्गमहिसीणं णवमे वग्गे, ईसाणस्स (य) अग्गमहिसीणं दसमे वग्गे।
भावार्थ - श्री सुधर्मा स्वामी बोले - हे जंबू! सिद्धि प्राप्त यावत् श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने धर्मकथासंज्ञक द्वितीय श्रुतस्कन्ध के दस वर्ग बतलाए हैं, वे इस प्रकार हैं -
१. चमरेन्द्र की अग्रमहीषियों (प्रमुख देवियों) का पहला वर्ग।
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