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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र SEEEEEEEEEEEEEEEEEEEECccccccccccccccccesERSEXIKSEEEEEEX • राजा पुंडरीक द्वारा चिकित्सा
(१३) तए णं थेरा भगवंतो पुंडरीयस्स पडिसुणेति जाव उवसंपजित्ताणं विहरंति। तए णं पुंडरीए राया जहा मंडुए सेलगस्स जाव बलियसरीरे जाए।
- भावार्थ - स्थविर भगवंतों ने राजा पुंडरीक का निवेदन स्वीकार किया यावत् वे यानशाला में ठहर गए। तब राजा पुंडरीक ने, जिस तरह मंडुक ने मुनि शैलक की चिकित्सा करवाई थी, उसी तरह कंडरीक अणगार की चिकित्सा करवाई यावत् उनका शरीर स्वस्थ सबल हो गया।
कंडरीक का शैथिल्य
(१४) तएणं थेरा भगवंतो पुंडरीयं रायं आपुच्छंति २ ता बहिया जणवयविहारं विहरंति। तए णं से कंडरीए ताओ रोयायंकाओ विप्पमुक्के समाणे तंसि मणुण्णंसि असणपाण-खाइम-साइमंसि मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववण्णे णो संचाएइ पुंडरीयं आपुच्छित्ता बहिया अब्भुजएणं जणवयविहारं विहरित्तए तत्थेव ओसण्णे जाए।
शब्दार्थ - अब्भुजएणं - उग्र विहार पूर्वकं, ओसण्णे - साध्वाचार में शिथिल।
भावार्थ - तत्पश्चात् स्थविर भगवंत पुंडरीक से पूछकर - उसका परामर्श लेकर बाहर जनपद विहार में निकल पड़े। मुनि कंडरीक बीमारी की बाधाओं से विमुक्त हो जाने पर भी इष्ट, मनोज्ञ अशन-पान-खाद्य-स्वाध में मूर्च्छित, गृद्ध, लोलुप एवं आसक्त बना रहा। वह पुंडरीक को पूछकर वहाँ से उग्र विहार पूर्वक जनपदों में विचरण हेतु नहीं गया। साधु आचार में शिथिल होकर वहीं रहने लगा। "
पुंडरीक द्वारा व्याज-स्तुति
(१५) तए णं से पुंडरीए इमीसे कहाए लद्धट्टे समाणे ण्हाए अंतेउरपरियालसंपरिवुडे
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