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पुण्डरीक नामक उन्नीसवां अध्ययन - अनगार कंडरीक रोगाक्रांत ३०१ sc000ccacaccccccccccccccccccccccccccccccccccx
फिर किसी समय स्थविर भगवंत ने पुंडरीकिणी नगरी के नलिनीवन उद्यान से प्रस्थान किया, वे बहिर्वर्ती जनपदों में विहरणशील रहे।
अनगार कंडरीक रोगाक्रांत
(११) 'तए णं तस्स कंडरीयस्स अणगारस्स तेहिं अंतेहि य पंतेहि य जहा सेलगस्स जाव दाहवक्कंतीए यावि विहरइ।
भावार्थ - तदनंतर अनगार कंडरीक रूक्ष, शुष्क, पर्युसित आहार सेवन के कारण शैलक मुनि की तरह यावत् दाहज्वर से पीड़ित हो गया।
(१२) तए णं थेरा अण्णया कयाइ जेणेव पोंडरीगिणी तेणेव उवागच्छंति २ ता णलिणिवणे समोसढा। पुंडरीए णिग्गए धम्मं सुणेइ। तए णं पुंडरीए राया धम्म सोच्चा जेणेव कंडरीए अणगारे तेणेव उवागच्छइ २ ता कंडरीयं वंदइ णमंसइ वं० २ त्ता कंडरीयस्स अणगारस्स सरीरगं सव्वाबाहं सरोगं पासइ २ त्ता जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छइ २ ता थेरे भगवंते वंदइ णमंसइ वं० २ त्ता एवं वयासी - अहण्णं भंते! कंडरीयस्स अणगारस्स अहापवत्तेहिं ओसहभेसजेहिं जाव तिगिच्छं आ(उट्टा)उंटामि, तं तुन्भे णं भंते! मम जाणसालासु समोसरह। ___भावार्थ - किसी समय पुंडरीकिणी नगरी में स्थविर भगवंतों का पदार्पण हुआ। वे वहाँ नलिनीवन उद्यान में रूके। राजा पुंडरीक दर्शन-वंदन हेतु आया। उसने धर्मोपदेश सुना। ... फिर राजा पुंडरीक, जहाँ कंडरीक अनगार था, वहां गया। उनको वंदन नमन किया। उनके शरीर को सब प्रकार की बाधाओं और रोग से युक्त देखा। तब वह स्थविर भगवंतों के पास आया। उन्हें वन्दन नमन कर निवेदन किया - भगवन्! मैं अनगार कण्डरीक की यथा प्रवृत्तसाधु-समाचारी के अनुकूल औषध, भेषज द्वारा यावत् चिकित्सा करवाना चाहता हूँ। भगवन्! आप मेरी यानशाला में विराजें।
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