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___ सुंसुमा नामक अट्ठारहवां अध्ययन - राजगृह आगमन
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विवेचन - साधुओं को आहार पानी ग्रहण करने में कितना उदास रहना चाहिए। इस बात को बताने के लिए ही यह दृष्टान्त दिया गया है। साधुओं के लिए भी एकेन्द्रिय आदि जीवों के मृत शरीर संतान के मृत शरीर के समान है। चिलाती पुत्र चोर की तरह सांसारिक लोगों ने अपने स्वार्थ से उन जीवों को हनन किया है। मोक्ष रूपी नगर की ओर जाते हुए धन्ना सेठ एवं उनके पुत्रों के समान साधु साध्वी भी जीवन रूपी अटवी में संयम रूपी प्राणों की रक्षा के लिए सन्तानों के मृत शरीर के समान प्राप्त हुए प्रासुक एषणीय आहार को उदासीन भाव से सेवन करते हैं। धन्ना सेठ उस समय जैनी नहीं थे। भावना की उदासीनता बताने के लिए ही यह दृष्टान्त बतलाया गया है। . उवणय गाहाओ -
जह सो चिलाइपुत्तो सुसुमगिद्धो अकजपडिबद्धो। धणपारद्धो पत्तो महाडविं वसणसयकलियं॥१॥ तह जीवो विसयसुहे लुद्धो काऊण पावकिरियाओ। कम्म व सेणं पावइ भवाडवीए महादुक्खं ॥२॥ धणसेट्ठी विणगुरुणो पुत्ता इव साहवो भवो अडवी। सुयमंसमिवाहारो रायगिह इह सिवं णेयं ॥३॥ जह अडविणयरणित्थरण पावणत्थं तएहिं सुयमंसं। भुत्तं तहेह साहू गुरुण आणाए आहारं॥४॥ . भवलंघण सिवपावण हेउं भुंजं(भुजं)ति ण उण गेहीए। वण्ण बलरूवहे च भावियप्पा महासत्ता॥५॥
॥ अट्ठारसमं अज्झयणं समत्तं॥ उपनय गाथाओं का भावार्थ -
चिलातपुत्र जिस प्रकार श्रेष्ठी कन्या सुंसमा पर गृद्ध-अति आसक्त होकर अकार्य करने पर उद्धत हुआ, धन श्रेष्ठी द्वारा पीछा किए जाने पर सैकड़ों संकटों से व्याप्त घोर जंगल में पहुँच गया, उसी प्रकार जो जीव विषय सुखों में लुब्ध-लोलुप होकर पाप पूर्ण क्रियाएं करता है, वह
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